श्रीनाथ पीठ, श्रीदेवनाथ मठ, महाराष्ट्र यह भारतवर्ष में विद्यमान तेजस्वी आध्यात्मिक आचार्य गुरुपीठों में एक है। यहाँ की ६०० वर्ष प्राचीन गुरु-शिष्य परंपरा ऐसी है,

श्री जनार्दनस्वामी- श्री एकनाथ- नित्यनाथ- कृष्णनाथ- विश्वनाथ- मु-हारनाथ – रंगनाथ- गोपालनाथ- श्री देवनाथ- दयालनाथ- जयकृष्णनाथ- भालचन्द्रनाथ- मारोतीनाथ गोविंदनाथ- मनोहरनाथ एवं विद्यमान पीठाधीश श्री श्री १००८ अनंत श्री विभूषित आचार्य सद्‌गुरु श्री जितेन्द्रनाथ महाराज |

इस पीठ परम्परा का मूल स्थान श्री देवनाथ मठ यह श्री क्षेत्र अंजनगांव, जि. अमरावती, महाराष्ट्र में स्थित है। तथा इसकी अन्य शाखाएँ नागपुर, ब-हानपुर, हैदराबाद, वाराणसी सहित देश व विदेश के कई अन्य स्थानों में विस्तारित है । नित्य भिक्षाटन व भारत पर्यटन, देव-देश-धर्म कार्यार्थ सक्षम नेतृत्व, आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्यसेवा, जनसेवार्थ पुरुष एवं महिलाओं के स्वतन्त्र संगठन, कथा-प्रवचनों के माध्यम से ज्ञानोपदेश एवं परंपरानुकूल वैदिक शिक्षा प्रबोधन यह इस परम्परा से सम्बद्ध कुछ मुख्य पैलु है।

यहाँ के पीठासीन गुरुदेव जी उपदेश करते है की, “ज्ञान, विज्ञान, संस्कृति, धर्म, इतिहास सहित विभिन्न विषयों में वेदाधिष्टित तत्वों की अनुभूति होती है। विश्व में कोई भी ऐसा विचार या विषय नहीं है, जिसका मूल व विकास वेदों में नहीं है। इस कारण वैदिक संस्कृति से संलग्नित सभी ज्ञान शाखाओं का अध्ययन, चिंतन एवं तत्संबंधी साहित्य का संरक्षण करना यह प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है।” इस उपदेशानुसार यहाँ मठकार्य के समान्तर वैदिक शिक्षाकार्य भी लगभग ६०० वर्षों से अव्याहत चल रहा है। साम्प्रत यह कार्य नागपुर, महाराष्ट्र में स्थित ‘जगद्‌गुरु श्रीदेवनाथ वेद‌विद्यालय’ एवं ‘जगद्‌गुरु श्रीदेवनाथ वैदिक विज्ञान व अनुसन्धान केंद्र’ इन नामाभिधानों से प्रतिष्ठित है।

यहाँ पर पारंपारिक वेदशिक्षा के साथ शालेय शिक्षा, वेद वेदांग शास्त्र-मीमांसा आदि सद्‌ग्रन्थों का अध्ययन, वैदिक यज्ञ एवं संस्कृति रक्षणार्थ विविध यज्ञसत्र और चर्चासत्र, समाज प्रबोधन हेतु भारतीय ज्ञान परंपरा पर आधारित विभिन्न अभ्यासक्रम, सुसंस्कृत-सुशील-सामर्थ्यशाली व्यक्तिनिर्माण हेतु विशिष्ट परियोजनाएँ इत्यादि उपक्रमों का प्रचलन होता है|

हमारा उद्दिष्ट

ज्ञान यह विश्वका चैतन्य तथा शक्तिका मूल स्रोत है | विश्व को चैतन्य तथा ज्ञान का प्रथम व निरंतर परिचय वेदों ने ही दिया | इसी कारण भारत की संस्कृति एवं उसका अस्तित्व जगत में “विश्वगुरु” के प्रतिष्ठा से गौरवान्वित रहा है | इस परिस्थिति को समझकर भारत की साम्प्रत अवस्था चिंतित करनेवाली है | पुनश्च भारत के ज्ञानवैभाव को विश्वाभिमुख करने की अनेक चेष्टाओं में जगद्गुरु श्रीदेवनाथ वेदविद्यालय यह वैदिक प्रतिष्ठान कार्यरत है |

  • हमारी प्राचीन वेदपरम्परा, विविध प्राचीन कला तथा विद्याएं, शास्त्र, दर्शन तथा उपनिषद, कर्मकांड आदि का पठन – पाठन, वहन तथा जतन करना |
  • वेदों को समझकर समूचे विश्व में फैले समाज में वेदों के प्रति रूचि, श्रद्धा व अधिकार की भावना कराना |
  • ज्ञान, विज्ञान, संस्कृति, धर्म, इतिहास के साथ हर विषय में वेदाधिष्टित तत्व है और विश्व में कोई भी ऐसा विचार या विषय नहीं है, जिसका मूल व विकास वेदों में नहीं है | इस कारण इनसे जुडी सभी ज्ञान शाखाओं का अध्ययन, चिंतन एवं तत्संबंधी साहित्य का संरक्षण करना |
  • विश्व की जगन्मान्य व जगत्परिचित भाषाओं में वैदिक ज्ञान का प्रचार तथा प्रसार करने हेतु वेदों को समझनेवाली, जाननेवाली और वेदों का निःस्पृह भाव से प्रचार व प्रसार करनेवाली एक नहीं अनेक टोलियाँ बने यह इस योजना का उद्दिष्ट है |
  • इसे देखते हुए जगद्गुरु श्रीदेवनाथ वेदविद्यालय से वैदिक शिक्षा के साथ स्कूली शिक्षा का प्रावधान चल रहा है |

अतः आप सभी इस योजना के भागीदार बनाकर तन – मन तथा धन से इस योजना को सहकार्य करे ऐसी प्रार्थना है |

हमारे सिद्धांत

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शिक्षा

उत्तम विद्या तथा उत्तम यश का समन्वय साधनेवाला सेतु यह शिक्षा है | हरेक के जीवन में सार्थ एवं यथोचित शिक्षा अत्यावश्यक है |

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संस्कार

विश्व के सभी व्यक्ति व पदार्थों को उनके गुण-धर्म सहित स्वीकार करते हुए उन्हें कल्याणकारी स्वरूप प्रदान करना यह संस्कार कहलाता है | उचित शिक्षा जीवन को संस्कारित बनाती है |

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साधना

ज्ञान से विज्ञान को साध्य कराने की प्रक्रिया साधना है | यह जीवन में आत्मिक कल्याण एवं भौतिक विकास का मार्ग प्रशस्त कराती है |

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सेवा

सेवाभाव यह जीवन को सार्थकता की अनुभूति कराता है | इसलिए ज्ञान और कर्म के साथ सेवा धर्म परमावश्यक है |