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ज्ञान यह विश्वका चैतन्य तथा शक्तिका मूल स्रोत है | विश्व को चैतन्य तथा ज्ञान का प्रथम व निरंतर परिचय वेदों ने ही दिया | इसी कारण भारत की संस्कृति एवं उसका अस्तित्व जगत में “विश्वगुरु” के प्रतिष्ठा से गौरवान्वित रहा है | इस परिस्थिति को समझकर भारत की साम्प्रत अवस्था चिंतित करनेवाली है | पुनश्च भारत के ज्ञानवैभाव को विश्वाभिमुख करने की अनेक चेष्टाओं में जगद्गुरु श्रीदेवनाथ वेदविद्यालय यह वैदिक प्रतिष्ठान कार्यरत है |
उद्दिष्ट:
- हमारी प्राचीन वेदपरम्परा, विविध प्राचीन कला तथा विद्याएं, शास्त्र, दर्शन तथा उपनिषद, कर्मकांड आदि का पठन – पाठन, वहन तथा जतन करना |
- वेदों को समझकर समूचे विश्व में फैले समाज में वेदों के प्रति रूचि, श्रद्धा व अधिकार की भावना कराना |
- ज्ञान, विज्ञान, संस्कृति, धर्म, इतिहास के साथ हर विषय में वेदाधिष्टित तत्व है और विश्व में कोई भी ऐसा विचार या विषय नहीं है, जिसका मूल व विकास वेदों में नहीं है | इस कारण इनसे जुडी सभी ज्ञान शाखाओं का अध्ययन, चिंतन एवं तत्संबंधी साहित्य का संरक्षण करना |
- विश्व की जगन्मान्य व जगत्परिचित भाषाओं में वैदिक ज्ञान का प्रचार तथा प्रसार करने हेतु वेदों को समझनेवाली, जाननेवाली और वेदों का निःस्पृह भाव से प्रचार व प्रसार करनेवाली एक नहीं अनेक टोलियाँ बने यह इस योजना का उद्दिष्ट है |
- इसे देखते हुए जगद्गुरु श्रीदेवनाथ वेदविद्यालय से वैदिक शिक्षा के साथ स्कूली शिक्षा का प्रावधान चल रहा है |
अतः आप सभी इस योजना के भागीदार बनाकर तन – मन तथा धन से इस योजना को सहकार्य करे ऐसी प्रार्थना है |
हमारे सिद्धांत
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शिक्षा
उत्तम विद्या तथा उत्तम यश का समन्वय साधनेवाला सेतु यह शिक्षा है | हरेक के जीवन में सार्थ एवं यथोचित शिक्षा अत्यावश्यक है |
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संस्कार
विश्व के सभी व्यक्ति व पदार्थों को उनके गुण-धर्म सहित स्वीकार करते हुए उन्हें कल्याणकारी स्वरूप प्रदान करना यह संस्कार कहलाता है | उचित शिक्षा जीवन को संस्कारित बनाती है |
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साधना
ज्ञान से विज्ञान को साध्य कराने की प्रक्रिया साधना है | यह जीवन में आत्मिक कल्याण एवं भौतिक विकास का मार्ग प्रशस्त कराती है |
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सेवा
सेवाभाव यह जीवन को सार्थकता की अनुभूति कराता है | इसलिए ज्ञान और कर्म के साथ सेवा धर्म परमावश्यक है |