- व्रताका नाव : ऋषीपंचमी
- व्रत तिथी: भाद्रपद शु. पंचमी
सा माध्यान्ह व्यापिनी ग्राह्या |
दिनद्वये मध्यान्ह व्याप्तौ तदव्याप्तौ च पूर्वा ||
पूजा मांडणी
चौकी पर वस्त्र आच्छादित करते हुए उसपर चावल के आठ ढेर रखे | उसपर कश्यपादी सात ऋषि और अरुंधती इनके प्रीत्यर्थ उत्तरसे दक्षिण की तरफ आठ सुपारिया रखे |
पूजा विधी
शास्त्रोक्त पद्धतीसे प्रचलित पूजा विधि ऐसी है,
- वंदन : घरके सभी बड़े व बुजुर्गोको, अपने घरमे स्थापित देवता और कुलदेवता को वंदन करे |
- आचमन / प्राणायाम : तीन बार जल प्राशन करते हुए चौथी बार पत्र में छोड़े और प्राणायाम करे |
- देवतास्मरण
कुलदेवताभ्यो नमः| ग्रामदेवताभ्यो नमः| एतत् कर्म प्रधान देवताभ्यो नमः| सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमो नमः|
- संकल्प (हाथसे जल छोड़े |)
मया इह जन्मनि जन्मान्तरे च ज्ञानतो अज्ञानतो व रजस्वला अवस्थायां कृत संपर्क जनित दोषपरिहारार्थं
अरुन्धती सहित कश्यपादि सप्तर्षि प्रीतिद्वारा श्री परमेश्वर प्रीत्यर्थं यथाज्ञानेन पूजनं अहं करिष्ये |
- श्रीगणेश पूजन
वक्रतुण्ड महाकाय सुर्यकोटि समप्रभ |निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा || श्रीगणेशाय नमः ||
- पृथ्वी पूजन :
पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता | त्वं च धारय मां देवी पवित्रं कुरु चासनम् || भूम्यै नमः ||
- न्यास विधि : “विष्णवे नमः |”, ऐसा १२ बार कहते हुए मस्तक से लेके चरण पर्यंत स्वयं की शरीर शुद्धि करे |
- कलश पूजन :
कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रुद्रः समाश्रितः |
मूले तत्रस्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः || कलशाय नमः ||
- शङ्ख पूजन :
त्वं पुरा सागरोत्पन्नो विष्णुना विधृतः करे |
नमितः सर्व देवैश्च पाञ्चजन्य नमोस्तुते || शङ्खाय नमः ||
- घण्टा पूजन :
आगमार्थं तु देवानां गमनार्थं तु राक्षसाम् |
कुर्वे घण्टारवं तत्र देवताव्हान लक्षणम् || घण्टायै नमः ||
- दीप पूजन :
भो दीप ब्रह्म रूपस्त्वं ज्योतिषां प्रभुरव्ययः |
आरोग्यं देहि पुत्रांश्च सर्वान्कामान्प्रयच्छ मे || दीपदेवताभ्यो नमः ||
- ध्यान : हाथ में अक्षत, बेल, पुष्प लेकर आवाहित देवता का इस श्लोक से ध्यान करे और उसे अर्पण करे |
मूर्तं ब्रह्मण्य देवस्य ब्रह्मणस्तेज उत्तमम् | सुर्यकोटि प्रतिकाशं ऋषिवृन्दं विचिन्तये ||अरुन्धतिसहित कश्यपादि सप्त ऋषिभ्यो नमः ||
- आवाहन : इसके पश्चात उत्तरसे दक्षिण की ओर इस मंत्रो से आवाहन करे |
श्रीकश्यप ऋषि – कश्यपः सर्व लोकेशः सर्व देवेषु संस्थितः | नराणां पापनाशाय ऋषिरूपेण तिष्ठति ||
श्रीअत्रि ऋषि – अत्रये च नमस्तुभ्यं सर्वभूत हितैषिणे | तपोरुपाय सत्याय ब्रह्मणेsमित तेजसे ||
श्रीभरद्वाज ऋषि – भरद्वाज नमस्तुभ्यं सदाध्यान परायण | महाजटील धर्मात्मा पापं हरतु मे सदा ||
श्रीविश्वामित्र ऋषि – विश्वामित्र नमस्तुभ्यं बलिंमखम् महाव्रतम् | अध्यक्षीकृत गायत्री तपोरूपेण संस्थितम् ||
श्रीगौतम ऋषि – गौतमः सर्वभूतानां ऋषीणां च महाप्रियः | श्रौतानां कर्मणां चैव संप्रदाय प्रवर्तकः ||
श्रीजामदग्नी ऋषि – जमदग्निर्महातेजाः तपसा ज्वलितप्रभः | लोकेषु सर्व सिद्ध्यर्थं सर्वपाप निवर्तकः ||
श्रीवसिष्ठ ऋषि – नमस्तुभ्यं वसिष्ठाय लोकानां वरदाय च | सर्वपाप प्रणाशाय सूर्यान्वय हितैषिणे ||
श्रीअरुन्धती देवी – अरुन्धति नमस्तुभ्यं महापाप प्रणाशिनि | पतिव्रतानां सर्वासांग धर्मशील प्रवर्तके ||
इतर पूर्व उपचार
तत्पश्चात “श्रीअरुन्धतीसहित कश्यपादि सप्तऋषिभ्यो नमः|” ऐसा उच्चारण करते हुए आवाहन, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, पंचामृतस्नान, गंधोदक स्नान, मांगलिक स्नान, शुद्धोदक स्नान आदि सभी पूजा उपचार पुष्प से जल सिंचन करते हुए करे |
- धूप, दीप, नैवेद्य : बाद में पुर्वपुजन प्रीत्यर्थ भगवान पर फूल चढ़ाए, धुप – दीप और शेष पंचामृत का भोग चढ़ाए |
- पुर्वपूजन : अब अभिषेक करने हेतु पहले के पुष्प (निर्माल्य) उतारकर नए पुष्प चढ़ाए और कहे, “अनेन पुर्वाराधनेन “श्रीअरुन्धतीसहित कश्यपादि सप्तऋषि देवताः प्रीयताम् |”
- अभिषेक : इस समय श्री महिम्नस्तोत्र आदि या अग्रिम श्लोक का पाठ करे |
कश्यपोsत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोsथ गौतमः | जमदग्निर्वसिष्ठश्च साध्वी चैवाप्यरुन्धती ||
उत्तर पूजन
पुनः “श्रीअरुन्धतीसहित कश्यपादि सप्तऋषिभ्यो नमः|” इस श्लोकसे यज्ञोपवीत, कापसाचे वस्त्र, गंध, अक्षत, फुले, हळद-कुंकू, अलंकार आदी उपचार करे |
आरती मंत्र
इस प्रकार आरती करे और बाद में मंत्रपुष्पांजलि, प्रदक्षिणा व नमस्कार समर्पित करे |
चक्षुर्दं सर्वलोकानां तिमिरस्य निवारणम् |महादीपं प्रयच्छामि सप्तर्षीन्प्रतिवः शुभम् ||
प्रार्थना
एते सप्तर्षयः सर्वे भक्त्या संपूजिता मया | सर्व पापं व्यपोहन्तु ज्ञानतोsज्ञानतः कृतं ||
येषां प्रभावेण दिवौकराश्च महाप्रभावास्तपसो बलेन | लोकत्रयारिष्ट विनाशकानां पुर्णास्तु ऋषीणां इयमल्पपूजा ||
अर्घ्यप्रदान
दाहिने हाथ में गंध, अक्षत (चावल), पुष्प, सुपारी, सिक्का लेकर उसपर जल छोड़े और यह श्लोक पढ़े |”श्रीअरुन्धतीसहित कश्यपादि सप्तऋषिभ्यो नमः | इदं अर्घ्यं समर्पयामि ||“
समारोप
ऐसा कहकर पात्र में जल छोड़े | इसके बाद वायन-दान दिया जाता है और आवाहित देवताओका विसर्जन किया जाता है | “अनेन यथाज्ञानेन कृत श्रीअरुन्धतीसहित कश्यपादिसप्तर्षि देवताः प्रीयताम् ||”
महत्त्व
- यह प्रधानतः महिलाओंद्वारा किया जाता है और इस दिन महिलाए कंदमुलाहार करती है तथा बैलो के कष्टका कुछ भी सेवन नहीं करती |
- भारतीय संस्कृति और इतिहास में अनेक पुण्यात्माए हुए है जिनका कार्य कर्तृत्व से उन्हें समाज ने ऋषि, मुनि, संत, महात्मा आदी विविध उपाधियोंसे गौरवान्वित किया |
- इन सभी का पुण्यस्मरण यह समस्त पापो का नाश करता है, ऐसी यहाकी धारणा व् श्रद्धाभाव है | इसलिए विविध सामाजिक वर्ग अलग-अलग व्रतोत्सव के माध्यम से इनका स्मरण करते है |
- ऋषिपंचमी ऐसा ही एक पर्व है जिसे महिलाए अपने मार्जन के लिए निभाती हुई दिखाई देती है |
- यह व्रत पूर्व ऋषियों के प्रति उनका कृतज्ञता भाव दर्शाता है |
अत्यंत उपयुक्त माहिती आहे.