अनंत चतुर्दशी

व्रतका  नाव : अनंत चतुर्दशी
व्रतकी तिथी : भाद्रपद शु. चतुर्दशी

तत्रोदये त्रिमुहूर्तव्यापिनी ग्राह्या तदभावे द्विमुहूर्ता ग्राह्या द्विमुहुर्तन्यूनत्वे पूर्वैव |अत्र पूर्वान्हो मुख्यः तदभावे मध्यान्होsपि || (पूर्वान्हकाल महत्वाचा)

इतिहास

कौन्डील्य नामक ऋषीने ‘अनंत’ का शोध लेने हेतु कठोर साधना की और अनंत सर्वत्र है, ऐसी उन्हें प्रचिती आई | इसी अनुभूति का स्मरण करते हुए इस व्रत को किया जाता है |

व्रताची माहिती

  • यह व्रत चौदह साल किया जाता है |
  • इसमे दर्भ द्वारा सात फनोंका नाग बनाया जाता है |
  • लाल सूत्र में १४ गाठियो के साथ इसे विशिष्ट पद्धतीसे बाँधा जाता है | इसमें से दो सूत्र अनंत व अनंती पूजा के लिए लेते है |
  • साधारणतः चौदह वर्षो तक इस व्रत को निभाकर इसका उद्यापन किया जाता है तथा कई बार हरसाल यह व्रत किया जाता हुआ भी दिखाई देता है |
  • इस पूजा में उत्तरपूजा ना करते हुए पिछले साल के पूजा की अनंत देवता यह विसर्जित की जाती है |
  • वायन : इसमें १४ की संख्या में अपाल / अनारसे किए जाते है |
  • यमुना के तट पर इस पूजा का विशेष महत्त्व बताया जाता है | वहा देवता के विशेष आवाहन की आवश्यकता नहीं होती |

पूजन विधी

शास्त्रोक्त पद्धतीसे प्रचलित पूजा विधि ऐसी है,

  • वंदन : घरके सभी बड़े व बुजुर्गोको, अपने घरमे स्थापित देवता और कुलदेवता को वंदन करे |
  • आचमन / प्राणायाम : तीन बार जल प्राशन करते हुए चौथी बार पत्र में छोड़े और प्राणायाम करे |
  • देवतास्मरण : (हाथ जोड़े)

कुलदेवताभ्यो नमः| ग्रामदेवताभ्यो नमः| एतत् कर्म प्रधान देवताभ्यो नमः| सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमो नमः|

  • संकल्प : (हाथसे जल छोड़े |)

मम सकुटुंबस्य सपरिवारस्य क्षेम स्थैर्य आयुरारोग्य सिद्ध्यर्थं मया आचरितस्य अनन्तव्रतस्य संपूर्ण फलावाप्तीद्वारा श्रीमद् अनन्तदेवता प्रीत्यर्थं यथाज्ञानेन यथाशक्ति ध्यान – आवाहनादि षोडशोपचार पूजनं अहं करिष्ये |

तत्रादौ निर्विघ्नता सिध्यर्थं महागणपति स्मरणं शरीर शुध्यर्थं षडङ्गन्यासं पृथ्वी, कलश, शङ्ख, घण्टा पूजनं च करिष्ये |

  • श्रीगणेश पूजन :

वक्रतुण्ड महाकाय सुर्यकोटि समप्रभ |निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा || श्रीगणेशाय नमः ||

  • पृथ्वी पूजन :

पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता | त्वं च धारय मां देवी पवित्रं कुरु चासनम् || भूम्यै नमः ||

  • न्यास विधि : विष्णवे नमः |”, ऐसा १२ बार कहते हुए मस्तक से लेके चरण पर्यंत स्वयं की शरीर शुद्धि करे |
  • कलश पूजन :

कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रुद्रः समाश्रितः | मूले तत्रस्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः || कलशाय नमः ||

  • शङ्ख पूजन :

त्वं पुरा सागरोत्पन्नो विष्णुना विधृतः करे | नमितः सर्व देवैश्च पाञ्चजन्य नमोस्तुते || शङ्खाय नमः ||

  • घण्टा पूजन :

आगमार्थं तु देवानां गमनार्थं तु राक्षसाम् | कुर्वे घण्टारवं तत्र देवताव्हान लक्षणम् || घण्टायै नमः ||

  • दीप पूजन :

भो दीप ब्रह्म रूपस्त्वं ज्योतिषां प्रभुरव्ययः | आरोग्यं देहि पुत्रांश्च सर्वान्कामान्प्रयच्छ मे || दीपदेवताभ्यो नमः ||

  • आत्मशुद्धि: स्वयं पर एवं पूजा साहित्य पर शंख जल प्रोक्षण करे |

शङ्खोदकेन पूजाद्रव्याणि संप्रोक्ष्य आत्मानं च प्रोक्षेत् |

यमुना पूजन

चौकीपर मध्य भागमे कलश रखकर उसमें यमुना का पूजन करे | श्रीमद् अनन्त व्रतान्गत्वेन यमुना पूजनं करिष्ये |

  • ध्यान : हाथमे चावल, पुष्प लेकर इस श्लोकसे ध्यान अर्पण करे |

लोकपालस्तुतां देवी मिन्दनील समुद्भवाम् |यमुने त्वामहं ध्याये सर्व कामार्थ सिद्धये || यमुनायै नमः ||

यमुनायै नमः||”, ऐसा उच्चारण करते हुए आवाहनादी विविध उपचार करते हुए  (वस्त्र, गंध, चावल, पुष्प, सौभाग्यद्रव्य) यमुना पूजन संपन्न करे |

  • यमुनेचे अंगपूजन : प्रत्येक नामसे अक्षत (चावल) अर्पण करे |

चन्चलायै नमः – पादौ पूजयामि |, चपलायै नमः – जानुनी पूज. |
भक्तवत्सलायै नमः – कटीं पूज. |, हरायै नमः – नाभीं पूज. |
मन्मथवासिन्यै नमः – गुह्यं पूज. |, अज्ञातवासिन्यै नमः – हृदयं पूज. |
भद्रायै नमः – स्तनौ पूज. |, अद्यहव्यै नमः – भुजौ पूज. |
रक्तकण्ठ्यै नमः – कण्ठं पूज. |, भवहर्त्रै नमः – मुखं पूज. |
गौर्यै नमः – नेत्रौ पूज. |, भागीरथ्यै नमः – ललाटं पूज. |
यमुनायै नमः – शिरं पूज. |, सरस्वत्यै नमः – सर्वाङ्गं पूज. |

  • यमुनेची नामपूजा : प्रत्येक नामसे अक्षत (चावल) अर्पण करे |

यमुनायै नमः | स्थितायै नमः | कमलायै नमः | उत्पलायै नमः | अभीष्टप्रदायै नमः | धात्र्यै नमः |
हरिहररूपिण्यै नमः | गङ्गायै नमः | नर्मदायै नमः | गौर्यै नमः | भागीरथ्यै नमः | तुन्गायै नमः |
भद्रायै नमः | कृष्णावेण्यै नमः | भवनाशिन्यै नमः |सरस्वत्यै नमः | कावेर्यै नमः | सिन्धवे नमः |
गौतम्यै नमः | गायत्र्यै नमः | गरुडायै नमः | चन्द्रचूडायै नमः | सर्वेश्वर्यै नमः | महालक्ष्म्यै नमः |
“सर्वपाप हरे देवी सर्वोपद्रवनाशिनी |सर्वसंपद्प्रदे देवी यमुनायै नमोस्तुते ||”

  • पूजन समारोप : बादमे यमुनायै नमः||”, ऐसा कहकर धूप, दीप, नैवेद्य, नारियल-दक्षिणा, आरती, कापूर, मंत्रपुष्प इ. उपचार अर्पण करे व पात्र में जल छोड़े |

श्रीशेष पूजन

यमुना कलशपर संध्यापात्र रखकर उसपर श्री शेष (नाग) रखे और उसका पूजन करे |श्रीमद् अनन्त व्रतान्गत्वेन श्रीशेष पूजनं करिष्ये |

  • ध्यान : हाथमें अक्षत (चावल), पुष्प लेकर इस श्लोकसे ध्यान अर्पण करे |

ब्रह्माण्डाधारभूतं च यमुनान्तरवासिनम् |फणासप्तसमायुक्तं ध्यायेsनन्त हरिप्रियम् || श्रीशेषाय नमः ||

श्रीशेषाय नमः||”, ऐसा उच्चारण करते हुए आवाहनादी विविध उपचार करते हुए  (वस्त्र, गंध, चावल, पुष्प, सुगंधीद्रव्य) श्रीशेष पूजन संपन्न करे | अनेन कृतपूजनेन तेन श्रीयमुनादेवताःप्रीयताम् |

  • श्रीशेष अंगपूजन : प्रत्येक नामाने अक्षत वहावी.

सहस्रपादाय नमः – पादौ पूजयामि |, गूढगुल्फाय नमः – गुल्फौ पूज. |
हेमजन्घाय नमः – जङ्घे पूज. |, मन्दगतये नमः – जानुनी पूज. |
पीताम्बरधराय नमः – कटीं पिज. |, गन्भीरनाथाय नमः – नाभीं पूज. |
पवनाशनाय नमः – उदरं पूज. |, उरगाय नमः – हस्तौ पूज. |
कालिकाय नमः – भुजौ पूज. |, कम्बुकण्ठाय नमः – कण्ठं पूज. |
फणाभूषणाय नमः – ललाटं पूज. |, लक्ष्मणाय नमः – शिरं पूज. |
अनन्तप्रियाय नमः – सर्वाङ्गं पूज. |
“अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कंबलम् | शङ्खपालं धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा ||”

  • पूजन समारोप : बादमे श्रीशेषाय नमः||”, ऐसा कहते हुए धूप, दीप, नैवेद्य, नारियल-फल, आरती, कापूर, मंत्रपुष्प इ. उपचार अर्पण करे व पात्रमे जल अर्पण करे | अनेन कृतपूजनेन तेन श्रीशेषदेवताः प्रीयताम् |

अनंत-अनंती दोरक पूजन

  • प्राणप्रतिष्ठा : श्री दोरक देवता को दाहिने हाथसे स्पर्श करते हुए कहे,

अस्यैः प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यैः प्राणाः क्षरन्तु च |अस्यै देवत्वमर्चायै मा महेतिच कच्चन || श्रीअनन्ताय नमः||

बादमे (दोरक) अनंत देवताका पंचोपचार (गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य) पूजन करे |

  • ध्यान : हाथ में अक्षत (चावल), पुष्प लेकर इस श्लोकसे ध्यान अर्पण करे |

पीताम्बरधरं देवं शङ्खचक्र गदाधरम् |अलङ्कृत समुद्रस्थं विश्वरूपं विचिन्तये || श्रीअनन्ताय नमः||

  • श्रीअनन्ताय नमः||, ऐसा कहकर या पुरुषसुक्ताने से आवाहनादी विविध उपचारसे (आवाहन, आसन, आचमन, पाद्य, अर्घ्य, स्नान इ.) पूर्वपूजन संपन्न करे |
  • पुरुषसुक्ताने अभिषेक करते हुए उत्तर पूजन (वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, सुगंधीद्रव्य) संपन्न करे |
  • ग्रंथी पूजन :अनंतके (दोरक) ग्रंथीपर (गाठपर) इस नाममंत्र से अक्षत (चावल) अर्पण करे |

श्रीयै नमः | मोहिन्यै नमः | पद्मिन्यै नमः | महाबलायै नमः | अजायै नमः | मङ्गलायै नमः |
वरदायै नमः | शुभायै नमः | जयायै नमः | विजयायै नमः | जयन्त्यै नमः | पापनाशिन्यै नमः |
विश्वरूपायै नमः | सर्वमङ्गलायै नमः

  • अनन्तदेवतेचे अंगपूजन : इस प्रत्येक नामसे अक्षत (चावल) अर्पण करे |

मत्स्याय नमः – पादौ पूजयामि |, कूर्माय नमः – गुल्फौ पूज. |
वराहाय नमः – जानुनी पूज. |, नारसिंहाय नमः – ऊरु पूज. |
वामनाय नमः – कटीं पूज. |, रामाय नमः – उदरं पूज. |
श्रीरामाय नमः – हृदयं पूज. |, कृष्णाय नमः – मुखं पूज. |
सहस्रशिरसे नमः – शिरं पूज. |, श्रीमद् अनन्ताय नमः – सर्वाङ्गं पूज. |

  • आवरण पूजन : आवरण देवता याने अनंत देवताके सभोवताल उपस्थित देवाताए | अग्रिम चौदह प्रकारोसे इन देवताओका अक्षत (चावल) मुख्य देवताके सभोवताल अर्पित करे तथा अर्घ्य (गंध, अक्षत, फुलं व जल संध्यापात्रामें छोड़े) देकर पुष्पसे आवाहित देवातापर जलसिंचन करे |

रमायै नमः| भूम्यै नमः| दयाब्धेत्राहिसंसार सर्पान्मांशरणागतं | भक्त्यासमर्पयेतुभ्यं प्रथमावरणार्चनं || (अर्घ्य)

वृद्धोल्काय नमः|, महोल्काय नमः|, शतोल्काय नमः|, सहस्रोल्काय नमः| दयाब्धे ..| भक्त्या ..द्वितीयावरनार्चनं |

वासुदेवाय नमः|, संकर्षणाय नमः|, प्रद्युम्नाय नमः|, अनिरुद्धाय नमः| दयाब्धे ..| भक्त्या ..तृतीयावरणार्चनं ||

केशवाय नमः|, नारायणाय नमः|, माधवाय नमः|, गोविन्दाय नमः|, विष्णवे नमः|,
मधुसूदनाय नमः|, त्रिविक्रमाय नमः|, वामनाय नमः| श्रीधराय नमः|, हृषीकेशाय नमः|,
पद्मनाभाय नमः|, दामोदराय नमः| दयाब्धे ..| भक्त्या ..चतुर्थावरणार्चनं ||

मत्स्याय नमः|, कूर्माय नमः|, वराहाय नमः|, नारसिंहाय नमः| वामनाय नमः|,
रामाय नमः|, श्रीरामाय नमः|, कृष्णाय नमः | बौद्धाय नमः|, कल्किने नमः|,
अनन्ताय नमः|, विश्वरूपिणे नमः| दयाब्धे ..| भक्त्या ..पञ्चमावरणार्चनं ||

अनन्ताय नमः|, ब्रह्मणे नमः|, वायवे नमः|, ईशानाय नमः| वारुण्यै नमः|, गायत्र्यै नमः|,
भारत्यै नमः|, गिरिजायै नमः| गरुडाय नमः|, सुपुण्याय नमः| दयाब्धे ..| भक्त्या ..षष्ठावरणार्चनं ||

इन्द्राय नमः|, अग्नये नमः|, यमाय नमः|, निर्ऋतये नमः| वरुणाय नमः|,
वायवे नमः|, सोमाय नमः|, ईशानाय नमः| दयाब्धे ..| भक्त्या ..सप्तमावरणार्चनं ||

शेषाय नमः|, विष्णवे नमः|, विधवे नमः|, प्रजापतये नमः| दयाब्धे ..| भक्त्या ..अष्टमावरणार्चनं ||

गणपतये नमः|, सप्तमातृभ्यो नमः|, दुर्गायै नमः|, क्षेत्राधीपतये नमः| दयाब्धे ..| भक्त्या ..नवमावरणार्चनं ||

ब्रह्मणे नमः|, भास्कराय नमः|, शेषाय नमः|, सर्वव्यापिने नमः| ईश्वराय नमः|, विश्वरूपाय नमः|,
महाकायाय नमः|, सृष्टिकर्त्रे नमः | कृष्णाय नमः|, हरये नमः|, शिवाय नमः|,
स्थितिकारकाय नमः| अन्तकाय नमः| दयाब्धे ..| भक्त्या ..दशमावरणार्चनं ||

शौरये नमः|, वैकुण्ठाय नमः|, महाबलाय नमः|, पुरुषोत्तमाय नमः| अजाय नमः|, पद्मनाभाय नमः|,
मङ्गलाय नमः|, हृषीकेशाय नमः| अनन्ताय नमः|, कपिलाय नमः|, शेषाय नमः|, संकर्षणाय नमः|
हलायुधाय नमः|, तारकाय नमः|, सीरपाणये नमः|, बलभद्राय नमः| दयाब्धे ..| भक्त्या ..एकादशावरणार्चनं ||

माधवाय नमः|, मधुसूदनाय नमः|, अच्युताय नमः|, अनन्ताय नमः| गोविन्दाय नमः|,
विजयाय नमः|, अपराजिताय नमः|, कृष्णाय नमः| दयाब्धे ..| भक्त्या ..द्वादशावरणार्चनं ||

क्षीराब्धीशायिने नमः|, अच्युताय नमः|, भुम्याधाराय नमः|, लोकनाथाय नमः| फणामणिविभुषणाय नमः|,
सहस्रमुर्ध्ने नमः|, सहस्रार्चिषे नमः| दयाब्धे ..| भक्त्या ..त्रयोदशावरणार्चनं ||

केशवाय नमः|, नारायणाय नमः|, माधवाय नमः|, गोविन्दाय नमः| विष्णवे नमः|, मधुसूदनाय नमः|, त्रिविक्रमाय नमः|,
वामनाय नमः| श्रीधराय नमः|, हृषीकेशाय नमः|, पद्मनाभाय नमः|, दामोदराय नमः| संकर्षणाय नमः|,वासुदेवाय नमः|,
प्रद्युम्नाय नमः|, अनिरुद्धाय नमः| पुरुषोत्तमाय नमः|, अधोक्षजाय नमः|, नरसिंहाय नमः|, अच्युताय नमः|
जनार्दनाय नमः|, उपेन्द्राय नमः|, हरये नमः|, श्रीकृष्णाय नमः| दयाब्धे ..| भक्त्या ..चतुर्दशावरणार्चनं ||

  • पत्री पूजन : इस प्रत्येक नामसे पत्री (ना हो तो चावल) अर्पण करे |

कृष्णाय नमः – (पळस) |, विष्णवे नमः – (उंबर) | हरये नमः – (पिंपळ) |, शंभवे नमः – (माका) |
ब्रह्मणे नमः – (जटामासी) |, भास्कराय नमः – (अशोक) | शेषाय नमः – (कवीठ) |, सर्वव्यापिने नमः – (वड) |
ईश्वराय नमः – (आंबा) |, विश्वरूपिणे नमः – (केळ) | महाकायाय नमः – (आघाडा) |, सृष्टिकर्त्रे नमः – (कण्हेर) |
स्थितिकर्त्रे नमः – (उंडळ) |, अनन्ताय नमः – (नागवेल) |

  • पुष्प पूजन : कमळ, जाई, चाफा, श्वेत कमळ, केवडा, बकुल, उन्दल, कण्हेर, धोत्रा, मोगरा, जुई इ. नानाविध पुष्पों से इन नामोद्वारा अर्पण करे |

अनंताय नमः | विष्णवे नमः | केशवाय नमः | अव्यक्ताय नमः |
सहस्रजिते नमः | अनन्तरुपिणे नमः | इष्टाय नमः | विशिष्टाय नमः |
शिष्टेष्टाय नमः | शिखण्डिने नमः | नहूषाय नमः | विश्वबाहवे नमः |
महीधराय नमः | अच्युताय नमः |

  • बादमे धूप, दीप, नैवेद्य, तांबुल, नारियल-दक्षिणा आदि अर्पण करे |

वायन पूजन

इसमें १४ की संख्यामे अनारसे वा अपाल रखे जाते है और उसका पूजन किया जाता है | पश्चात आरती, कर्पुरारती, मंत्रपुष्पांजली, प्रदक्षिणा, नमस्कार व क्षमाप्रार्थना करे | “आवाहनं न जानामि न जानामि तवार्चनम् | पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वर ||

दोरकबन्धन मंत्र

इस मंत्रसे पुरुषोने दाए तथा महिलाओने बाए हाथ में सूत्र धारण करे | “अनन्त संसार महासमुद्रंअग्न्यं समभ्युद्धर वासुदेव |अनन्तरूपे विनियोजयस्वअनन्त सुत्राय नमो नमस्ते ||

जीर्णदोरक विसर्जन मंत्र

इस मंत्रसे जीर्ण दोरक का विसर्जन करे | नमः सर्वहितानन्त जगदानन्दकारक | जीर्णदोरकं ममुंदेव विसृजेऽहं त्वदाज्ञया ||

पूजन विसर्जन

अनेन यथाज्ञानेन कृत पूजनेन श्रीमद् अनन्त देवताः प्रीयताम् |

वायन दान मंत्र

इस मंत्रसे पूजित वायन का दान करे तथा दो बार आचमन करते हुए किया हुआ कर्म परमेश्वर को समर्पित करे |

गृहाणेदं द्विजश्रेष्ठ वायनं दक्षिणायुतं |तवत्प्रसादादहं देव मुच्येयं कर्मबन्धनात् ||
अनेन वायन प्रदानेन श्री अनन्त देवताः प्रीयताम् |

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