अधिकमास

अधिकमास किसे कहते है ?

असंक्रान्तिरमांतोयो मासश्चेत्सोधिमासकः | मलमासाद्वयोज्ञेयः प्रायश्चैत्रादिसप्तासु ||
द्वात्रिम्शद्भिर्गतैर्मासैर्दिनैः षोडशभिस्तथा | घटिकानां चतुष्केण पतत्यधिकमासकः ||

भारतीय कालगणना के अनुसार चांद्रवर्ष यह ३५४ दिनका तथा सौरवर्ष यह ३६५ दिनका होता है | इसमे ११ दिनका अंतर दिखाई देता है | इसका मेल यह ३२ महीने बाद आने वाले ‘अधिकमास’ के द्वारा किया गया है | इसमे चैत्र से आश्विन तक के सात महिनोका समावेश होता है और कई बार फाल्गुन मास भी अधिकमास होता है |

मलमास किसे कहते है?

प्राचीन मान्यता के अनुसार विश्वका कल्याण और अकल्याण यह यहापर होनेवाले सत्कर्म और दुष्कर्म के कारण होता है | इस दुश्कार्मोके अधिक बढ़ने के कारण बारा मासोका पाप बढ़ गया और इसलिए इस पापका तीसरा हिस्सा यह तेरहवे अधिकमास में परिणित हुआ, इसलिए इसे ‘मलमास’ भी कहा जाता है |

पुरुषोत्तममास किसे कहते है ?

  • इस अधिकामासको गोलोकाधिपति भगवान श्रीकृष्णने स्वयं का नाम दिया और इस मासको ‘पुरुषोत्तम मास’ नामका गौरव प्राप्त हुआ | इस कालमे निरंतर धर्माचरण करनेसे अधिक सत्कर्म फलप्राप्ति होती है |
  • इसलिए इस कालावधीमे सम्पूर्ण शाकाहार धारण करते हुए परद्रोह, परनिंदा, क्रोध, कपट, अभक्ष्य भक्षण आदिका त्याग किया जाता है |

व्रताचरण

व्रताचरण के तौर पर इस मासमे विविध नियमोका पालन दिखाई देता है | जैसे, एकभुक्त व्रत, फलाहार व्रत, एकांती व्रत, अयाचित वृत्तीसे आहार, प्रतिदिन मुठठीभर धान्यदान, नित्य अभ्यंग स्नान, तेल-घी इ. दीपपूजन, मौनव्रत, केवल भूमीवर शय्या आदि नियमोका पालन दिखाई देता है |

अधिकमासका वैशिष्ट्य

  • ३३ की संख्या में बत्तासा, अनारसा, खारिक, सुपाड़ी, फल आदिका दान दिया जाता है |
  • “अधिकमास माहात्म्य” इस ग्रंथका पारायण किया जाता है |
  • इस मासमे गर्भाधानसे लेकर अन्नप्राशनतक के आठ सस्कार कर सकते है और अन्य नित्य धार्मिककृत्य भी कर सकते है |
  • विशेषतः रामायण, भगवद्गीता, विष्णुसहस्रनाम, श्रीरामरक्षा, श्रीमद्भागवत इत्यादी विविध ग्रंथोका वाचन, पठण आदी भी किए जाते है |

अधिकमासमें आनेवाले पाच पुण्यपर्व व कृत्य

  • वैधृती योग :- इस योगपर विष्णुसहस्रनाम के १६ पाठ करेट हुए १६ दान दिए जाते है |
  • व्यतिपात योग :- धान्य, सुवर्ण आदींका थालिमे १३ की संख्यामे फलोका दान दिओया जाता है |
  • पौर्णिमा :- विधियुक्त श्रीराधाकृष्णका पूजन करते हुए अन्न, वस्त्रादिंका दान दिया जाता है |
  • अमावस्या :- तर्पण विधी संपन्न करते हुए ‘तिलपात्रका’ दान दिया जाता है |
  • द्वादशी :- इस तिथीपर तीर्थस्थानमें पूजा संपन्न करते हुए दान दिया जाता है |

मासांती (महिनेके आखरिमे) दिए जाने वाले दान

  • गरिबोको चप्पल, गादी, चद्दर, दुलई आदींका दान दिया जाता है |
  • दीन, रोगी, भुखोकों ‘अन्नदान’ करना चाहिए |
  • गोमाताको चारा आदी दे |
  • ओम राधिकापुरुषोत्तमाभ्यां नमः|, इस मंत्रका रोज जाप करते हुए वह माला कृष्णभक्तको दान दे |
  • अधिकामासका उद्यापन करना हो तो समई के साथ पुरोहितको वायनदान करे |

नित्य प्रार्थना

अधिकमासमे मुख्यत: पुरुषोत्तम देवताकि आराधना व पूजन किया जाता है |जिसमे पंचसुक्त पवमान, विष्णुसहस्रनाम, वैदिक विष्णुसूक्त, पुरुषसुक्त या इस पुरुषोत्तम स्तोत्रका रोज नित्य पठण करना चाहिए |

|| पुरुषोत्तम स्तोत्र ||
ॐ नमः पुरुषोत्तमाख्याय | नमस्ते विश्वभावन | नमस्तेस्तु हृषीकेशी | महापुरुष पूर्वज ||१||
येनेदमखिलं जातं | यत्र सर्वं प्रतिष्ठितं | लयमेष्यति यत्रैतत् | तं प्रपन्नोस्मि केशवम् ||२||
परेशः परमानन्दः | परात्परतरः प्रभुः | चिद्रुपश्चित्परिज्ञेयो | स मे कृष्णः प्रसीदतु ||३||
कृष्णं कमलपत्राक्षं | रामं रघुकुलोद्भवं | नृसिंहं वामनं विष्णुं | स्मरत्यदि परां गतिं ||४||
वासुदेव वराहं च | कंस केशी निषूदनं | पुराणपुरुषं यज्ञपुरुषं | नित्यं प्रणतोस्म्यहं ||५||
अनादिनिधनं देवं | शङ्खचक्रगदाधरं | त्रिविक्रमं हलधरं | प्रणतोस्मि सनातनम् ||६||
य इदं कीर्तयेन्नित्यं | स्तोत्राणामुत्तमोत्तमं | सर्वपापं विनिर्मुक्तो | विष्णुलोके महीयते ||७||

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