पितृ पंधरवाडा (श्राद्ध)
तिथी : भाद्रपद कृ. प्रतिपदा ते अमावस्या
श्राद्धसमय
“महालय पितृश्राद्धे अपरान्हव्यापिनी तिथिर्ग्राह्या |”
अर्थ – सूर्योदयसे अठरा घटीकांसे जादा रहनेवाली तिथी ग्राह्य है |
प्रस्तावना
- “जातस्य हि ध्रुवो मृत्युः”, जन्म के उपरांत मृत्यु निश्चित है |
- मृत्यु के पश्चात् विविध विधि अलग अलग पंथ-सम्प्रदायोमे किये जाते है | हिन्दू धर्ममे किया जाने वाला श्राद्धविधी यह एक प्राचीन व प्रगल्भ विधि है |
- ‘श्रद्धेने करावे ते श्राद्ध’, ऐसी इसकी एक सर्वश्रुत व्याख्या है किन्तु माता-पिता आदींके स्मरणार्थ किया जाने वाला श्राद्ध तिथीनुसारण करना चाहिए ऐसा शास्त्रवचन है | यह श्राद्ध करनेवाला अधिकारी पुत्र जानना चाहिये, “पुन्नाम नरकात् त्रायते इति पुत्रः |”
श्राद्ध का करावे ?
मनुष्याः प्रतिपद्यन्ते स्वर्गं नरकमेव वा | नैवान्ये प्राणिनः केचित् नान्यः प्राणी महाभाग फलयोनौ व्यवस्थितः ||
(विष्णुधर्मोत्तर पुराण २/११३/४-६)
अर्थ – मनुष्य जन्म प्राप्त होते ही जीवको शुभ-अशुभ का स्पर्श होता है | तिर्यक योनी के प्राणी (पशु आदि) मृत्युके पश्चात वायुरुपमे विचरण करते हुए अगले योनिमे जन्म लेते है किन्तु मनुष्य का ऐसा नहीं है इसलिए उसे श्राद्ध आदि कर्म करने चाहिए |
श्राद्ध क्यूँ करे ?
- “श्रद्धार्थं इदं श्राद्धम्|” (श्रद्धासे किया जाने वाला)
- “श्रद्धया कृतं संपादितं इदं श्राद्धम् |” (श्रद्धासे संपादित किया जाने वाला कर्म)
- “श्रद्धया दीयते यस्मात् तत् श्राद्धम् |” (जिसमे श्रद्धासे कुछ दिया जाता है)
- “श्रद्धया इदं श्राद्धम् |” (श्रद्धासे किया हुआ)
श्राद्धका महत्त्व क्या है?
- “श्राद्धात् परतरं नान्यत् श्रेयस्करं उदाहृतं | तस्मात् सर्व प्रयत्नेन श्राद्धं कुर्यात् विचक्षणः ||” – महर्षि सुमन्तु
अर्थात – श्राद्धसे श्रेष्ठ अन्य कल्याणकारी उपाय नहीं है | - “आयुः प्रजां धनं विद्यां स्वर्गं मोक्षं सुखानिच | प्रयच्छन्ति तथा राज्यं पितरः श्राद्ध तर्पिताः ||” – मार्कण्डेय पुराण
श्राद्ध, तर्पण आदिसे राज्य, आयु, प्रजा, धन, विद्या आदी की अनुकूलता प्राप्त होती है | - “देवपितृकार्याभ्यां न प्रमदितव्यं |”- तै.उप.१/११/१
उपनिषद कथनानुसार श्राद्ध न करना यह प्रमाद है |
परिस्थितीनुसार श्राद्ध कैसे करे ?
- “वित्तशाठ्यम न समाचरेत |”
अपनी परिस्थिति उत्तम हो तो कंजूसी ना करते हुए श्राध्द करे | - “तस्मात् श्राद्धम् नरो भक्त्या शाकैरपि यथाविधि |”
यदि ना हो तो केवल शाक (सब्जी) से करे | - “तृणकाष्ठार्जनं कृत्वा प्रार्थयित्वा वरारकम् | करोति पितृकार्याणि ततो लक्षगुणं भवेत् ||”
वह भी ना हो तो काष्ठ आदि इकठ्ठा करते हुए, उसे बेचकर प्राप्त धनसे श्राद्ध संपन्न करे | अधिक कष्टसे अनंत फलप्राप्ति होती है | वह भी ना हो तो गायकों घास दे | - “नमेस्ति वित्तं न धनं च नान्यत् श्रद्धोपयोग्यं स्व पितृन्नतोस्मि | तृप्यन्तु भक्त्या पितरो मयैतौ कृतौ भुजौ वर्त्मनि मारुतस्य ||” – विष्णु पु.३/१४/३०
वह भी ना हो तो एकांत में जाकर बाहे फैलाकर उपरोक्त श्लोकका पठन करे |
श्राद्ध कुणी करावे ? (श्राद्धाधिकार)
- “मृते पितरि पुत्रेण क्रिया कार्या विधानतः | बहवः स्युर्यदा पुत्राः पितुरेकत्रवासिनः ||
सर्वेषां तु मतं कृत्वा ज्येष्ठेनैव तु यत्कृतं |द्रव्येण चा विभक्तेन सवैरेव कृतं भवेत् ||” – (श्राद्धप्रकाश)
ज्येष्ठ पुत्र या उसकी आज्ञा से अन्य पुत्र करे. समस्त बंधू एकत्रित ना हो सके तो एकही तिथिपर भिन्न भिन्न स्थानोपर श्राद्ध कर सकते है | - “स्त्रीणाममन्त्रकं श्राद्धम् |” – (हेमाद्रिवचन, निर्णयसिन्धु)
पुत्र ना हो तो पोता, जमाई और कोई ना हो तो स्त्री भी श्राद्ध कर सकती है | वह अमंत्रक श्राद्ध कर सकती है |
सर्वपित्री अमावास्याका महत्त्व
- यह तिथि सकल पिटर देवाताओके तृप्ति के लिए मनाई जाती है |
- अपने परिवारके पूर्व सदस्य जैसे पिता, चाचा, मामा, मौसी, माता, चाची, बुआ, बहन, भ्राता, जमाई, कुलपुरोहित, विद्यागुरु, मोक्षगुरु, उपकार कर्ते आदिके लिए कृतज्ञता यहाँ व्यक्त की जाती है |
- इस दिन हिरण्य, भरणी, चट, पिंडात्मक, महालय आदी श्राद्ध किए जाते है | इसमे किया जाने वाला ‘तील-तर्पण विधी’ ऐसा है |
तर्पण विधी
- पूर्वाभिमुख आचमन करे |
- “समस्त पितर तृप्ति हेतु तिल तर्पणं करिष्ये |”, ऐसा संकल्प करे |
- सव्यसे देवतर्पण व निवितिसे ऋषितर्पण करे |
- अपसव्यसे पितृतर्पण करे | (हाथमे तिल लेकर अन्गुठेसे जल छोड़े)
- इसमे पिता-पितामह-प्रपितामह, माता-पितामही-प्रपितामही, मातामह-मातृपितामह-मातृप्रपितामह, पितृव्य (चाचा), मातुल (मामा) इ. क्रमसे तर्पण करे | घरके पुरखोकी प्रतिमा पुजन करते हुए उसे हार अर्पण करे |
- एक मुद चावल ‘काकबली’ के लिए बाहर रखा जाता है व गायकों गेहू दिए जाते है |
- इस दिन एकभुक्त रहते हुए अभ्यंग, सुगंधी द्रव्य, मैथुन आदी वर्ज्य करते है |
पितृ वंदना
इस दिन वेदोक्त पितृसुक्त, रक्षोघ्नसूक्त इनका अभिश्रवण करते है तथा करावे तसेच मार्कंडेय पुराण अंतर्गत यह प्रार्थना पढ़ी जाती है | इनका नित्य श्रवण या नित्य पठण पितृतृप्ती हेतू किया जाता है |
रुचिरुवाच
अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् | नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषां ||
इन्द्रादीनान्च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा | सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ||
मन्वादीनां मुनीन्द्राणाम् सुर्याचन्द्रमसोस्तथा | तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्सू दधावपि ||
नक्षत्राणां ग्रहाणांच वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा | द्यावापृथिव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलिः ||
देवर्षीणां जनित्रुंश्च सर्वलोकनमस्कृतान् | अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येऽहं कृताञ्जलिः ||
प्रजापतेः कश्यपाय सोमाय वरुणाय च | योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलिः ||
नमो गणेभ्यः सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु | स्वयंभुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ||
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधराम्स्तथा | नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहं ||
अग्निरुपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम् | अग्नीषोममयं विश्वं यत एतदशेषतः ||
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः | जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिणः ||
तेभ्योsखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतमानसः | नमो नमो नमस्तेमे प्रसीदन्तु स्वधाभुजः ||
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