रक्षाबंधन

त्यौहार का नाम : रक्षाबंधन
त्यौहार तिथि : श्रावण शु. पौर्णिमा (महाराष्ट्रीय पंचांगानुसार)

श्रावण पूर्णिमायां भद्रारहितायां त्रिमुहुर्ताधिकोद
यद्व्यापिण्यामपरान्हे प्रदोषे वा कार्यं |
इदं ग्रहण संक्रान्ति दिनेsपि कर्तव्यं ||

सूत्र बंधन संदर्भ

  • नारद पुराण (प्र.१२४) में श्रावण पौर्णिमा को किये जाने वाले “वेदोपकर्म” (वैदिक अध्ययन का प्रारम्भ करना) का ऊल्लेख आता है, जहां शिष्य के सन्दर्भ में सूत्र धारण का सन्दर्भ दिखाई देता है|
  • भविष्य पुराण (अ.१३७,उत्तरपर्व) में सूत्र बंधन का सन्दर्भ प्राप्त होता है, यहाँ वृत्रासुर का वध करने हेतु इन्द्र पत्नी इंद्राणीपति के हाथ को रक्षा सूत्र बांधती है |
  • “तन्न आ बध्नामि शतशारदाय आयुष्मान् जरदष्टिर्यथसत् |”
    यजुर्वेद में सौ सालतक निरोगी शरीर के साथ जीवन में चिरायुता प्राप्त करने लिए परस्पर के बंधन में रहने का उपदेश दिखाई देता है, जो बंधन की पवित्र भावना को सूचित करता है| (यजु. ३४.५२)

रक्षा बंधन विधी

  • चावल, सोना तथा सफ़ेद सरसों को नए वस्त्र में बांधते हुए अपनी कुलदेवता या उपास्य देवता के चरणों में अर्पण करे |
  • उसके ऊपर पोवती / राखी के पूजन करते हुए रखे |
    ( पोवती – यह नौ धागों से बना हुआ एक सूत्र है जिसपर आठ गांठिया बंधी जाती है | महालक्ष्मी के त्यौहार में भी इसे बाँधा जाता है | घर के सदस्यों के अनुसार इसकी संख्या निश्चित करे |)
  • इसपर ब्रह्मा –विष्णु और महेशजी का आवाहन करते हुए प्रणव की (ओमकार की) प्रतिष्ठा करे |
  • अपने कुल के रीतीरिवाजानुसार पूजन के बाद तथा भोग चढाने के उपरांत अपरान्हकाल मे (दोपहर के समय) यह पोवती / राखी श्रीसूर्य भगवान को अर्पण करे (दिखाए) |
  • इसके बाद उपरोक्त श्लोक पठन करते हुए घरके पुण्यवती के हाथो इसे बाँध ले |
  • रक्षा सूत्र बंधन श्लोक

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलाः |
तेन त्वां प्रतिबध्नामि रक्षे माचल माचल ||

परंपरागत महत्त्व

  • मनुस्मृति में ऐसा कहा गया है,
    यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः |
    यत्रै नास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्रा फलः क्रियाः ||
    मनु महाराजजी ने परम्परासे “स्त्रीशक्ति” का आदर करना चाहिए, ऐसा बताया है | जहाँ अनादर होगा वहा सभी कार्य विफल होते है | इसीलिए यह सूत्र साधारणतः भगिनी या पत्नीद्वारा बांधा जाता हुआ दिखाई देता है |
  • भारतीय परम्परा के अनुसार रक्षाबंधन यह धर्म भावना निर्माण करनेवाला पर्व और साधन है | गुरू – शिष्य परम्परा में भी रक्षा सूत्र बांधने की परम्परा है | कई स्थानो पर आज भी गाव के पुरोहित द्वारा या गुरू के द्वारा सूत्र बाँधा जाता है |
  • जैन समुदाय भी इस पर्व को “रक्षा पर्व” मानकर मनाते है |

ऐतिहासिक महत्त्व

  • वैदिक कालसे रक्षाबंधन या रक्षा मंगल यह प्रथा शुरू है |
  • मोगल काल में अनेक बार राजपूत महिलाए राखिबंधू बनती दिखाई देती है, जो संकट काल में अपनी राखी भगिनी के रक्षण हेतु मदद करने आता था | उदेपुर की रानी कर्मावती ने गुजरात के बहादुरशहा से रक्षण प्राप्त करने के लिए हुमायुन को भाई मानकर राखी भेजी थी |

सामाजिक महत्त्व

  • दक्षिण प्रांत में कुछ जगहों पर यह उत्सव कार्तिक मास में भी मनाया जाता है |
  • इस उत्सव को “नारळी पौर्णिमा” भी कहा जाता है |
  • काश्मीर प्रांत में विशेष रूपसे इस त्यौहार का महत्त्व देखा जाता है | प्राचीन मान्यता के अनुसार राखी पौर्णिमा को भगवान अमरनाथ का षोडशोपचार पूजन किया जाता है |
  • आज के परिप्रेक्ष्य में रक्षासूत्र और उसका बंधन (राखी याने लाज राखना) यह परस्पर का स्नेह संबंध, पवित्र रिश्ता, घनिष्ठ प्रेम का रक्षण करने का तथा परस्पर भ्रातृभाव वर्धन करने का अमूल्य बोध करवाता है |
  • यह बंधन और उसका प्रतीकात्मक सूत्र निश्चित ही हमारे मन एवं बुद्धि में प्रक्रम, संयम एवं सहस के बीज निर्माण करता है जो अनेकानेक प्रतिकूल परिस्थितियों में धैर्यसे आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है |

1 thought on “रक्षाबंधन”

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *