उत्सव का नाम : शारदीय नवरात्र
उत्सव समय : इस वर्ष अधिक आश्विन के कारण अश्विन शुक्ल प्रतिपदासे नवमी तक देवीका यह उत्सव मनाया जा रहा है |
उदये तु त्रिमुहुर्त व्यापिनी प्रतिपत् ग्राह्या | अमायुक्ता न कर्तव्या प्रतिपच्चण्डिकार्चने ||
- साधारणतः अमावस्यायुक्त प्रतिपदा ग्राह्य नहीं मान जाती | प्रतिपदा का क्षय होने परही ग्राह्य मानी जाती है |
- अपने कुलाचारानुसार घटस्थापना की जाती है | इसमें साधारणतः अखण्डदीप, मालाबंधन, सप्तशती पाठ, कुमारिका भोजन-पूजन, अष्टमी को होमहवन आदि क्रियाये की जाती दिखाई देती है |
घटस्थापना
- घट – यह मृत्तिका या ताम्रा का होता है |
- देवता –
- कुलाचारानुरूप कई बार देवतास्वरूप प्रतिमा स्थापित की जाती है |
- कई बार घट के ऊपर दीप रखा जाता है |
- कुछ स्थानों पर ऊपर देवतास्वरूप नारियल रखा जाता है |
पूजा पद्धती
- प्रातः स्नानादिसे शुचिर्भूत होना चाहिए |
- आचमन, प्राणायाम करते हुए घरके देवता व ज्येष्ठोंको वंदन करे |
- इसप्रकार संकल्प करे,
मम सकुटुंबस्य त्रिगुणात्मक श्रीदुर्गाप्रीतिद्वारा सर्वापच्च्छान्तिपुर्वक दीर्घायुर्धनपुत्रादि वृद्धि समस्त शत्रु पराजय कीर्तिलाभ सिध्यर्थं अद्य दिनादारभ्य नवमी पर्यन्तं त्रिगुणात्मिका श्रीदुर्गा प्रीत्यर्थे मालाबन्धन, अखन्ददीपघटस्थापना पूर्वकं (तथा च श्री सप्तशती पाठ पूर्वकं उपवास नक्तै भुक्तान्यतम नियमादिरुपं) श्री शारदा नवरात्र पूजनं करिष्ये |
- श्रीगणेश, पृथ्वी, कलश, शंख, घंटा व दीप पूजन करे |
घटस्थापन विधी
- गेहूसहित मिट्टीकी वेदी बनाए जे मुख्य देवता के दाहिने बाजुमें स्थापित करे और उसपर घट स्थापित करे |
- उसमे पञ्च पल्लव, सर्व औषधी, सुपारी, सिक्का, कर्पूर आदि डाले |
- उसमे गंध, पुष्पादि अर्पण करे |
- घट के सभोवताल पुनः मिट्टीका वेष्टन करते हुए धान्य इ. डाले व उपरोक्त मंत्र के साथ जलसिंचन करे,
पर्जन्याय प्रगायत दिवस्पुत्राय मीळ्हुषे | सनोयवसमिच्छतु ||
वर्षन्तुते विभावरी दिवो अभ्रस्व विद्युतः | रोहन्तु सर्वं बीजान्यव ब्रह्मद्विषो जहि ||
घटप्रार्थना
देव दानव संवादे मध्यमानो महोदधौ | उत्पन्नोऽसि यदा कुम्भ विधृतो विष्णुना स्वयं ||
त्वत्तोये सर्व तीर्थानि देवाः सर्व त्वयि स्थिता | त्वयि तिष्ठन्ति भूतानां त्वयि प्राणाः प्रतिष्ठिताः ||
शिवाः स्वयत्वमेवासि विष्णुस्त्वंच प्रजापतिः | आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवोः सपैतृकाः ||
त्वयि तिष्ठति सर्वेऽपि यतः काम फलप्रदः | तवत्प्रसादादिनां पूजां कर्तुमी हे जलोद्भव ||
सान्निध्यं कुरु मे देव प्रसन्नो भव सर्वदा | अनया पूजया वरुणाद्यांवाहित देवताः प्रसन्नो भव ||
- अखंड दीपपूजन :
घीका दिपक घटकी दाहिनी ओर व तेल का दीपक बाईं ओर रखे | दीपक के नीचे ऐं ह्रीं श्री वास्तुपुरुषाय नमः ऐसा कहते हुए गंध, पुष्प चढ़ाये व ऐं ह्रीं दिपाय नमः ऐसा कहते हुए दीपक का पंचोपचार(गंध,अक्षत,फुल,धूप,दीप,नैवेद्य) पूजन करे | - दीप प्रार्थना
अखण्डं दीपकं देव्याः प्रीयते नवरात्रकं | उज्वलाये अहोरात्रं ऐकाचित्तो दृढव्रतः ||
अस्मिन्क्षेत्रे दीपनाथ निर्विघ्न सिद्धि हेतवे | लक्ष्मीयन्त्रस्य पूजार्थ अनुज्ञां दातुमर्हसि ||
- देवता आवाहन :
अनन्तर घटको पूर्णपात्र से ढके जिनके यहाँ घट के ऊपर दीप हो वह कटोरिमे चावल लेकर उसमे चार सुपारियां रखे | जो नारियल रखते है वह उसीपर आवाहन करे | प्रथम सुपारीपर इन मंत्रो के साथ आवाहन करे,
शैलपुत्र्यै नमः, ब्रह्मचारिण्यै नमः, चन्द्रघण्टायै नमः, कुष्माण्डायै नमः, स्कन्दमात्रे नमः,कात्यायन्यै नमः, कालरात्र्यै नमः, महागौर्यै नमः, सिद्धिदात्र्यै नमः
मध्यभाग में तीन सुपारियोंपर इनका आवाहन करे,
महाकाल्यै नमः, महालक्ष्म्यै नमः, महासरस्वत्यै नमः
- प्राणप्रतिष्ठा : आवाहन होनेपर घट / कलश को हाथ लगाते हुए प्रणवावृत्ती से प्राणप्रतिष्ठा करे,
अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यैः प्राणा क्षरन्तु च | अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेतिच कच्चन ||
- ध्यान :
ॐ विद्युद्दाम-सम-प्रभां मृग-पति-स्कन्ध-स्थितां भीषणाम्। कन्याभिः करवाल-खेट-विलसद् -हस्ताभिरासेविताम् ।।
हस्तैश्चक्र-गदाऽसि-खेट-विशिखांश्चापं गुणं तर्जनीम्। विभ्राणामनलात्मिकां शशि-धरां दुर्गां त्रिनेत्रां भजे ।।
- आवाहन :
आगच्च्छत्वं महादेवि स्थाने चात्र स्थिरा भव |यावत्पुजां करिष्यामि तावत्वं सन्निधौ भव ||
श्री त्रिगुणात्मिका जगदंबायै नमः | आवहयामि |
- पूर्वपूजन : आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, पंचामृतस्नान, गंधोदक स्नान, मांगलिक स्नान, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य (शेष पंचामृत) आदींनी पूर्वपूजन करावे.
अनेन पुर्वाराधनेन तेनश्री अवाहित देवताः प्रीयन्तां | उत्तरे निर्माल्यं विसृज्य | अन्यत्र पुष्पं धारयेत् | अभिषेकं कुर्यात् |
- अभिषेक : पुरुषसुक्त, श्रीसूक्त, श्री दुर्गा सप्तश्लोकी व देवी के नानाविध सूक्त, स्तोत्रोंसे अभिषेक करे |
- उत्तरपूजन : वस्त्र, गन्ध, अक्षत, फुले, हळद-कुंकू, धूप, दीप, नैवेद्य आदिसे उत्तर पूजन करे |
- मालाबंधन : इसप्रकार हरेक दिन द्वितियेन्हि, तृतीयेन्हि ….नवमेन्हि ऐसा कहे |
मालादि सर्वदेवानां प्रीतिदा शुभदा यतः | लंबितासौ मया भक्त्या गृहाण जगदम्बिके ||
ग्रथितां तिलकल्हार जाती मन्दार चम्पकैः | पुष्पमालां प्रयच्छामि प्रथमेन्हि तवाम्बिके ||
- प्रार्थना
पूजाफलानि कार्याद्येः सुकृतं यन्मयार्चितं | तत्सर्वं फलदं मेस्तु भक्ति मुक्त्यर्थं देहि मे ||
- समारोप
अनेन कृत षोडशोपचार पूजनेन त्रिगुणात्मिका श्री जगदम्बा प्रीयन्ताम् |
महत्त्व व विशेष
- आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को मातामह श्राद्ध भी किया जाता है |
जातमात्रोपि दौहित्रो जीवत्यपि च मातुले |कुर्यान्मातामहं श्राद्धं प्रतिपद्याश्विनेसिते ||
इस दिन माता, पिता (मृत होते हुए) का श्राद्ध करना चाहिए। भले ही बच्चे के मामा पितृसत्तात्मक हों, पोते को माँ को श्रद्धांजलि देनी चाहिए।
- हिन्दू धर्म में देवी की विशेष आराधना यह साल में प्रधानतया दो जाती है | वासंतिक नवरात्र में चैत्र शुद्ध प्रतिपदा से नवमी तक तथा शारदीय नवरात्र में आश्विन शुद्ध प्रतिपदा से नवमी पर्यन्त देवी की उपासना की जाती है |
नव दुर्गा –
प्रथमं शैलपुत्रीति, द्वितीयं ब्रह्मचारिणी । तृतीयं चन्द्रघण्टेति, कूष्मांडीति चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्कंदमातेति षष्ठं कात्यायनीतिच । सप्तमं कालरात्रिश्च महागौरीतिचाष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदां प्रोक्ता नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः । उक्तान्येतानि नामानि, ब्रह्मणैव महात्मना ।।
१. शैलपुत्री, २. ब्रह्मचारिणी ३. चन्द्रघंटा ४. कूष्मांडी (किंवाकुष्मांडी) ५. स्कंदमाता ६. कात्यायनी ७. कालरात्री ८. महागौरी ९. सिद्धिदात्री
- नवरात्र यह ऋतु परिवर्तन का काल है | इस कालमे मनुष्यमे नई शक्ति, उत्साह व उमंग का संचार होता है | बृहत संहिता के अनुसार सूर्यादि ग्रहोंका परिणाम यह मनुष्यके आरोग्य एवं व्यवहारपर होता है | ब्रह्मचर्य, संयम, उपासना, यज्ञ आदि शरीरमे रोगप्रतिकारक शक्ति को बढ़ाते है | स्मरणशक्तिकी वृद्धि होकर मनुष्यका बौद्धिक विकास होता है | इसलिए ऐसा माना जाता है की नवरात्र यह शारीरिक व आत्मिक शुद्धता का काल है |
- गुजरातमे नवरात्रि उत्सव उत्साहसे मनाया जाता है जो दांडिया या रास के समूह नृत्य से विशेष रूपसे मनाया जाता हुआ दिखाई देता है |