उत्सव का नाव : ज्येष्ठागौरी
उत्सव का मुहूर्त: श्रावण शु. पक्षे अनुराधा, ज्येष्ठा व मूल नक्षत्र (अष्टमी तिथियुक्त ग्राह्य )
मैत्रेणावाहये देवीं ज्येष्ठायां तु प्रपूजयेत् | मूले विसर्जये देवीं त्रिदिनं व्रतमुत्तमम् ||
यदाज्येष्ठा द्वितीयदिने मध्यान्हात्पूर्वम् समाप्यते | तदा पूर्वदिनमेव पूजनम् |
परदिने अपराण्हे स्पृशति तदा परैव ||
वैशिष्ट्य
- इस उत्सव मे ज्येष्ठा / कनिष्ठा देवी व अपत्यप्राण इनकी एकत्रित पूजा कि जाती है |
- इस पुजामे भी बहुत विविधताए दिखाई देती है |
- जैसे मिट्टीके द्वारा बनाए हुए परम्परागत देवियोंकी आराधना की जाती है जहा आकर्षक आरास व शोभा बनाई जाती है |
- कई बार मटको द्वारा रची आरास को पोशाख व अलंकार पहनाकर उनका पूजन किया जाता है |
- दक्षिण भारत के कुछ स्थानों पर यह उत्सव भाद्रपद शु. तृतीया से मनाया जाता है जहा आटेद्वारा बनी देवियोंका पूजन किया जाता है |
- कुछ स्थानों पर धान्य राशि पर रची देवियों का पूजन किया जाता है |
- कोकण प्रांत में नदी / तालाब से बालू व कंकर लाकर उनकी स्थापना एवं पूजन किया जाता है |
- कुछ समाजमे (कोली) ‘तेरडा’ नमक वनस्पतिके पौधे लाकर उनमे देवियोकी स्थापना व पूजन किया जाता दिखाई देता है |
पूजन क्रम
साधारणतः यह उत्सव तीन दिन मनाया जाता है तथा यह नक्षत्र प्रधान माना जाता है |
प्रथम दिन
- इस दिन अनुराधा नक्षत्र को ‘गौरी देवि’ का आवाहन किया जाता है | घर की सौभाग्यवती महिलाए द्वारपर इसे लेकर आती है |
- पश्चात उनका दुधसे पाद प्रक्षालन किया जाता है और कुमकुम से ‘महालक्ष्मी पदचिन्ह’ बनाकरमंगल ध्वनी से उन्हें घरका दर्शन कराया जाता है |
- बादमे जहा आरास रची हो वहा इन्हें खड़ा (स्थापित) किया जाता है |
- कई बार जहा इन्हें खड़ा किया जाता है वहा धान्य से भरी हुई मटके पायली या
मटके का इस्तेमाल किया जाता है |
- बादमे ‘भाजी-भाकरी’ (अम्बाडे की सब्जी) का भोग चढाने का भी रिवाज पाया जाता है |
द्वितीय दिन
ज्येष्ठा नक्षत्र में ‘गौरी पूजन’ सम्पन्न किया जाता है | इसका पूजन विधि इस प्रकार है –
पूजन विधी
- वंदन : घरके सभी बड़े व बुजुर्गोको, अपने घरमे स्थापित देवता और कुलदेवता को वंदन करे |
- आचमन / प्राणायाम : तीन बार जल प्राशन करते हुए चौथी बार पत्र में छोड़े और प्राणायाम करे |
- देवतास्मरण :
कुलदेवताभ्यो नमः| ग्रामदेवताभ्यो नमः| एतत् कर्म प्रधान देवताभ्यो नमः| सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमो नमः|
- संकल्प : (हाथसे जल छोड़े )
मम सकुटुंबस्य सपरिवारस्य अलक्ष्मी निरसनपूर्वक धनधान्य पुत्रपौत्र सौभाग्यादि अभिवृद्धिद्वारा श्रीज्येष्ठादेवी प्रीत्यर्थं भाद्रपद शुक्लपक्षे ज्येष्ठा नक्षत्रे यथाज्ञानेन यथाशक्ति यथामिलित उपचार द्रव्यैः षोडशोपचार ज्येष्ठादेवी पूजनं अहं करिष्ये |
तत्रादौ निर्विघ्नता सिध्यर्थं महागणपति स्मरणं शरीर शुध्यर्थं षडङ्गन्यासं पृथ्वी, कलश, शङ्ख, घण्टा पूजनं च करिष्ये |
- श्रीगणेश पूजन :
वक्रतुण्ड महाकाय सुर्यकोटि समप्रभ |निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा || श्रीगणेशाय नमः ||
- पृथ्वी पूजन :
पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता | त्वं च धारय मां देवी पवित्रं कुरु चासनम् || भूम्यै नमः ||
- न्यास विधि : “विष्णवे नमः |”, ऐसा १२ बार कहते हुए मस्तक से लेके चरण पर्यंत स्वयं की शरीर शुद्धि करे |
- कलश पूजन :
कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रुद्रः समाश्रितः | मूले तत्रस्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः || कलशाय नमः ||
- शङ्ख पूजन :
त्वं पुरा सागरोत्पन्नो विष्णुना विधृतः करे | नमितः सर्व देवैश्च पाञ्चजन्य नमोस्तुते || शङ्खाय नमः ||
- घण्टा पूजन :
आगमार्थं तु देवानां गमनार्थं तु राक्षसाम् | कुर्वे घण्टारवं तत्र देवताव्हान लक्षणम् || घण्टायै नमः ||
- दीप पूजन :
भो दीप ब्रह्म रूपस्त्वं ज्योतिषां प्रभुरव्ययः | आरोग्यं देहि पुत्रांश्च सर्वान्कामान्प्रयच्छ मे || दीपदेवताभ्यो नमः ||
- आत्मशुद्धि: स्वयं पर एवं पूजा साहित्य पर शंख जल प्रोक्षण करे |
शङ्खोदकेन पूजाद्रव्याणि संप्रोक्ष्य आत्मानं च प्रोक्षेत् |
प्राणप्रतिष्ठा विधी
आवाहित देवता को दाहिने हाथ से स्पर्श करते हुए अग्रिम श्लोको का उच्चारण करे,
अस्यैः प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यैः प्राणाः क्षरन्तु च | अस्यै देवत्वमर्चायै मा महेतिच कच्चन ||
अस्यां मूर्तौ मम प्राण इह प्राणाः | अस्यां मूर्तौ मम जीव इह स्थितः ||
- देवता को दर्पण दिखाए तथा अष्टगंध, पुष्प एवं बालभोग (घी-गुड) अर्पण करे |
- पात्र में जल छोड़ते हुए बोले,“अनया पूजया अपत्यप्राण सहित श्रीज्येष्ठाकनिष्ठिका: प्रीयताम् |”
- अधिक विस्तृत विधी करने हेतु पुरोहितका मार्गदर्शन ले |
पूर्वपूजन
- ध्यान :
हाथ में अक्षत, पुष्प लेकर आवाहित देवता का इस श्लोक से ध्यान करे और उसे अर्पण करे |
त्रिलोचनां शुक्लदन्तीं बिभ्रतीं काञ्चनीं तनुम् |विरक्ता रत्कनयनां ज्येष्ठां ध्यायामि सुन्दरीम् ||
अपत्यप्राण सहित श्रीज्येष्ठाकनिष्ठिकाभ्यां नमः || ध्यानं समर्पयामि ||
- पूर्व उपचार : तत्पश्चात “अपत्यप्राण सहित श्रीज्येष्ठाकनिष्ठिकाभ्यां नमः ||” ऐसा उच्चारण करते हुए या श्रीसूक्त के हरेक मंत्र से आवाहन, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, पंचामृतस्नान, गंधोदक स्नान, मांगलिक स्नान, शुद्धोदक स्नान आदि सभी पूजा उपचार पुष्प से जल सिंचन करते हुए करे |
- धूप, दीप, नैवेद्य : बाद में पुर्वपुजन प्रीत्यर्थ भगवान पर फूल चढ़ाए, धुप – दीप और शेष पंचामृत या घी-गुड का भोग चढ़ाए |
- पुर्वपूजन समारोप : अब अभिषेक करने हेतु पहले के पुष्प (निर्माल्य) उतारकर नए पुष्प चढ़ाए और कहे.
“अनेन पुर्वाराधनेन अपत्यप्राण सहित श्रीज्येष्ठाकनिष्ठिका: प्रीयताम् |” - अभिषेक : इस समय श्री देवीस्तुतीपर श्रीसूक्त या देवीस्तोत्र आदिका पठण करे और पुष्प से जलसिंचन करे |
- अंग पूजा : प्रत्येक इन्द्रियोपर / प्रत्येक नामके बाद देवीको अक्षत अर्पण करे |
लक्ष्म्यै नमः – पादौ पूजयामि ||, पद्मायै नमः – गुल्फौ पूजयामि ||
कमलायै नमः – जानुनी पूज. ||, क्षिराब्धितनयाय नमः –उरुं पूज.||
इन्दिरायै नमः – कटिं पूज. ||, मन्गलायै नमः – नाभिं पूज. ||
मन्मथवासिन्यै नमः – स्तनौ पूज.||, क्षमायै नमः – हृदयं पूज.||
हरिप्रियाय नमः – कण्ठे पूज. ||, उमायै नमः – नेत्रे पूज. ||
रमायै नमः – शिरं पूज. ||, श्रीमहालक्ष्म्यै नमः – सर्वाङ्गं पूज.||
- नामपत्री पूजा : प्रत्येक नाम के साथ उल्लेखित पत्री (ना होने पर अक्षत) अर्पण करे |
श्रीयै नमः – अगस्तीपत्रं समर्पयामि || (अगस्ती वृक्षपान)
श्रीलक्ष्म्यै नमः – केतकीपत्रं समर्प. || (केवड्याचे पान)
श्रीवनमालिकाये नमः – धत्तुरापत्रं समर्प.|| (धोत्र्याचे पान)
बिभिषणायै नमः – तुलसीपत्रं समर्प.|| (तुळशीचे पान)
शाकय नमः – अशोकपत्रं समर्प. || (अशोकाचे पान)
वसुमालिकायै नमः – भृन्गराजपत्रं समर्प. || (माक्याचे पान)
सूर्यायै नमः – किन्वपत्रं समर्प. || (केन्याचे पान)
पन्कजधारिण्यै नमः – पङ्कजपत्रं समर्प. || (कमळाचे पान)
मुक्ता हारसमप्रभायै नमः – दुर्वां समर्प. || (दुर्वा)
पुष्कारिण्यै नमः – जपापत्रं समर्प. || (जास्वंदाचे पान)
पिन्गलिन्यै नमः – बिल्वपत्रं समर्प. || (बेलाचे पान)
हेममालिन्यै नमः – चंपकपत्रं समर्प. || (चाफ्याचे पान)
इन्दिरायै नमः – अपामार्गपत्रं समर्प. || (आघाड्याचे पान)
जमदग्निप्रियाय नमः – ताडपत्रं समर्प. || (ताडाचे पान)
श्रीजगदात्र्यै नमः – नानाविधपत्राणि समर्प. || (इतर सर्व पाने)
उत्तर पूजन
- पुनः “अपत्यप्राण सहित श्रीज्येष्ठाकनिष्ठिकाभ्यां नमः ||” इस श्लोकसे सूती वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, हल्दी – कुमकुम, माला, अत्तर – सुगंधी द्रव्य, अलंकार आदी उपचार अर्पण करे |
- अपने कुलपरम्परा के अनुसार वस्त्र, सूत्र, धान्य-राशि, पत्री आदि अर्पण करे |
- कुछ जगहों पर ‘फुलोरा’ बनाया जाता है तथा कुछ जगहों पर ‘कथली आम्बिल’ पूजन किया जाता है |
- इसके बाद में ओटी / वायन दान दिया जाता है |
- नैवेद्य में घावन घाटले / पुरणपोली / आंबील / सोलह सब्जी आदि पदार्थोका भोग चढ़ाया जाता है |
- आरती व मंत्रपुष्प :
बाद में आरती व मंत्रपुष्पांजली, प्रदक्षिणा व नमस्कार अर्पण करे,
महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि | तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ||”मन्त्रपुष्पाञ्जलिं समर्पयामि ||
- अर्घ्यप्रदान : दाहिने हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प, सुपारी, सिक्का लेकर उसपर जल छोड़ते हुए इस श्लोक से अर्घ्य दे |
ज्येष्ठे श्रेष्ठे तपोनिष्ठे ब्रह्ममिष्ठे सत्यवादिनी |इह्येहित्वं महाभागे अर्घ्यं गृह्य सरस्वती ||श्रीज्येष्ठागौर्यै नमः | इदं अर्घ्यं समर्पयामि ||
- प्रार्थना : हाथ जोड़कर प्रार्थना करे और तदनन्तर ब्राह्मण-सुवासिनी पूजन करे |
त्वं लक्ष्मीस्त्वं महादेवी त्वं ज्येष्ठे सर्वदामरैः |पूजितोsसि मया देवी वरदाभव मे सदा ||
तृतीय दिन
मूल नक्षत्र में आवाहित देवताका विसर्जन किया जाता है |
- आवाहित देवता का पंचोपचार पूजन किया जाता है |
- कुल परम्परा के अनुसार दहीभात / मुरडपोली इ. का भोग लगाया जाता है |
- बादमे पूजा कथा सुनते है और सूत्र को पीले रंगका और सोलह गाठीयोसे बांधा जाता है | इस प्रसादरुपी सूत्र को महिलाए गलेमे धारण कराती है | कई बार यह सूत्र आश्विन पौर्णिमा तक पहना जाता है |
- ग्रामीण भागो में प्राप्त धान्य का ‘राशि भोज’ कराने की प्रथा दिखाई देती है |
- इस श्लोक का उच्चारण करते हुए आवाहित देवताका विसर्जन किया जाता है,
ज्येष्ठे देवी समुत्तिष्ठ स्वस्थानं गच्छ पूजिता |ममाभीष्ट पदानार्थं पुनरागमहेतवे ||
संदर्भ व महत्त्व
- अग्निपुराण एवं देवी भागवत (स्कंद ९.३८/३९) में ‘यमराज – सावित्री’ संवाद में भाद्रपद शु. अष्टमी, ज्येष्ठा नक्षत्र में ‘महालक्ष्मी / गौरी पूजन’ का उल्लेख दिखाई देता है |
- कुछ ग्रंथो के अनुसार रजोगुण से युक्त ज्येष्ठा गौरी यह ‘अलक्ष्मी’ है, जिसका पूजन प्रथम किया जाता है | और कनिष्ठा यह ‘लक्ष्मी’ है जिसका पूजन बादमे होता है |
- यह शिवपरिवार की देवी है और ‘कनौज’ में इसका महापीठ है |
- इसने स्त्रियोंके सौभाग्य का असुरोंसे रक्षण किया, तभीसे ‘महालक्ष्मी गौरी पूजन’ की शुरुवात हुई ऐसा भी बताया जाता है |
- चैत्र मासमे भी प्रतिपदा से अक्षय तृतीया तक इसका पूजन किया जाता है |
- ‘संगीत पारिजात’ ग्रन्थ के अनुसार ‘गौरी’ यह माता पार्वतीकी ‘रागिनी’ है जिसको संध्याकाल में गाया जाता है | (इसमे ऋषभ,धैवत कोमल बाकी सब स्वर शुद्ध है |)