उत्सव का नाम : जन्माष्टमी / गोकुलाष्टमी
उत्सव तिथि : श्रावण वद्य अष्टमी
इयं निशीथ व्यापिनी पूर्वा वा परा ग्राह्या |
उभयेद्युनिशीथयोगे अभावे वा परैव ||
अस्यां रोहिणी नक्षत्र योगे बुध सोमवार योगेच फलातिशयः ||
अर्थात – श्रावण वद्य अष्टमीइस तिथिपर मध्यरात्री, रोहिणी नक्षत्र पर मथुरा नगरी में कंस के बंदीगृह में कृष्ण का जन्म हुआ | इसलिए रोहिणी नक्षत्र तथा अष्टमी तिथि को जन्माष्टमी व्रत किया जाता है |
सामान्य पूजन विधि
- सप्तमी तिथि को एकभुक्त रहकर अष्टमी तिथि पर स्नानादि से पवित्र होकर व्रत का संकल्प करे, “श्रीकृष्ण प्रीत्यर्थं सपरिवार श्रीकृष्णपूजां करिष्ये |”
- अष्टमी तिथि पर प्रातः कई लोग कुल-गोत्र, परम्परा के अनुसार पुरोहित के द्वारा “पवमानसूक्त” आदि द्वारा अभिषेकपूर्वक भगवान श्रीकृष्ण का पंचोपचार / षोडशोपचार पूजन करते है |
- इस दिन फलाहार / उपवास करते हुए ठाकुरजी को इसीका भोग लगाया जाता है |
- ‘आज हमारे घर ठाकुरजी का प्राकट्य है’, इस भाव के साथ अखंड श्रीकृष्ण स्तुति / नाम संकीर्तन के साथ रोशनाई की जाती है और इस मंगल बेला में प्रभु की झांकी तैयार की जाती है | मंच के एक तरफ देवकी व् कृष्ण तथा दूसरी ओर यशोदा, उसकी कन्या, वासुदेव, नंदबाबा की स्थापना की जाती है |
- महाराष्ट्र प्रदेश में “गोकुल” (मिटटी से बनी मूर्तियाँ) बनाकर उसे पूजने की प्रथा है | इनमे श्रीराधाकृष्ण, गोप-गोपियाँ, गोमाता, तुलसी आदि की स्थापना एवं पूजन किया जाता है |
- कुछ स्थानों पर केवल घर के मंदिर में स्थापित कृष्ण मूर्ती का सजाकर पूजन किया जाता है |
- रात्री में कथा, पुराण, नृत्य, गायन आदि विविध कलाओं द्वारा श्रीकृष्ण लीलाओंका वर्णन कर “रतजगा” (रात्र जागरण) करते है |
- रात्रौ १२ बजे श्रीकृष्ण जन्मा कथा वृत्तांत करते हुए पुष्प, गुलाल वृष्टि कर श्रीकृष्ण जन्म मनाते है |
- कुछ स्थानों पर “रेशमी वस्त्र” द्वारा ठाकुरजी का बालस्वरूप तैयार कर, उसे आभूषित किया जाता है और नन्हे बालक की तरहा पलने में झुलाया जाता है |
- कई घरो में पुनः ठाकुरजी का यथोपचार पूजन किया जाता है जिस समय “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय |”, इस मंत्र का जाप किया जाता है |
- तदनंतर “कृष्ण कृष्ण” ऐसा जयघोष एवं संकीर्तन किया जाता है |
- भोग – भोग में साधारणतः शुद्ध मिठाई, पंजीरी, फल, सौंठ की पंजीरी आदि का भोग चढ़ाया जाता है |
- इसके बाद ठाकुरजी की आरती करते हुए इस मंत्रसे उन्हें मंत्रपुष्पांजलि अर्पण की जाती है ,
दामोदराय विद्महे वासुदेवाय धीमही |
तन्नः कृष्णः प्रचोदयात् ||
प्रार्थना
योगेश्वराय देवाय योगानां पतये विभो |
योगेश्वराय नित्याय गोविन्दाय नमो नमः ||
यज्ञेश्वराय यज्ञाय तथा यज्ञोद्भवाय च |
यज्ञानां पतये नाथ गोविन्दाय नमो नमः ||
विश्वेश्वराय विश्वाय तथा विश्वोद्भवाय च |
विश्वस्य पतये तुभ्यं गोविन्दाय नमो नमः ||
- दुसरे दिन लाही, पोहा, दही, आचार आदि एकत्रित कर नैवेद्य समर्पित किया जाता है, जिसे “गोपालकाला” भी कहते है | यह साहचर्य, प्रेम और एकता को दर्शाता है |
- यह व्रत संतति, संपत्ति व अंतमे वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति कराता है, ऐसा विधान है | (व्रतराज)
विशेष उत्सव पद्धती
- यदुवंशी लोग अपना “मूलपुरुष” तथा महानुभाव पंथिय अपना आराध्य मानते हए विशेष रूपसे यह उत्सव मनाते है |
- अनेक वैष्णव लोग प्रतिपदा से अष्टमी तक दीपा आराधना, पालकी, दोलोत्सव (वृन्दावन), कृष्ण लीला मंचन, भागवत पठन, भजन – कीर्तन, नृत्य – गायन आदि द्वारा यह नवरात्रोत्सव के रूप में मनाते है |
- महाराष्ट्र में “गोविंदा आला रे आला | गोकुलात आनंद झाला |”, ऐसा गीत गाते हुए गहर – घर जाकर “दहिकाला” बाटते है और “दहीहंडी” फोड़ते है |
पौराणिक इतिहास
परित्राणाय साधूनां विनाशायच दुष्कृताम |
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ||
- स्वायम्भुव मनु के काल में अतितपस्वी ‘सुतपा’ व ‘पृश्नी’ के गर्भ से ‘पृश्निगर्भ’ का प्राकट्य हुआ, जो स्वयं भगवान थे | भगवान के हरेक जन्म समय हम ही उन के माता – पिता बने ऐसा वरदान भी उन्होंने प्राप्त किया |
- तत्पश्चात उन्होंने ‘कश्यप’ व ‘अदिति’ के रूप में जन्म लिया और उनके गर्भ से ‘उपेन्द्र’ (वामन अवतार) का प्राकट्य हुआ |
- द्वापार्युगा में पुनः ‘वासुदेव’ व ‘देवकी’ के गर्भ से “भगवान श्रीकृष्ण” अवतरित हुए और इसही दिन यह जन्माष्टमी उत्सव मनाया जाता है |
उपासक भाव एवं उपासना पद्धती
नानाविध भक्त संप्रदाय का अपना एक इतिहास रहा है जो अपनी उपासना पद्धती और उनके भाव एवं आदर्शो को प्रतिष्ठित करता है |
- मातृभाव – यशोदा, देवकी द्वारा
- गोपीभाव – गोप-गोपी (रासपूजन) द्वारा
- पत्नीभाव – संत मीराबाई आदि
- शिष्यभाव – अर्जुन द्वारा
- भक्तभाव – उद्धव द्वारा
- सखाभाव – सुदामा
व्यक्त होता दिखाई देता है |
भगवान श्रीकृष्ण – “कृष्णस्तु भगवान स्वयम् |“
- इन्हें भगवान विष्णु के दशावतारो में ‘आठवां’ एवं ‘पूर्णावतार’ कहा जाता है |
- “छान्दोग्योपनिषद” (३.१७.४.६) के अंतर्गत घोर अंगिरस शिष्य कृष्ण का तथा महाभारत में गर्ग एवं सांदीपनी शिष्य कृष्ण का उल्लेख प्राप्त होता है जिन्होंने अर्जुन को “श्रीमद भगवद गीता” का उपदेश किया |
- श्रीकृष्ण की बाललीलाओं का सन्दर्भ अश्वघोष द्वारा रचित ‘बुद्धचरित’ में भी पाया जाता है |
णच्चणसलाहणणिहेण पासपरिसंठीआ णिउणगोवी |
सरिसगोविआणे चुम्बई कवोलपडीमागअकेण्हम् || (गा.स. २.१४)
अर्थात – भगवान श्रीकृष्ण द्वारा रचित रासलीला में नृत्य करते हुए गोपियों को थकावट आई और उनके गालों के ऊपर बहता पसीना श्रीकृष्ण की प्रतिमा के रूप में प्रकट हुआ |
- “ब्रह्मसंहिता” नामक ग्रन्थ में श्रीकृष्ण केवल देवता ही नहीं अपितु “सर्वान्तर्यामी” एवं “व्यापक तत्त्व” के रूप में विषद किया गया है | “अण्डान्तरस्थ परमाणु चयान्तरस्थं |”
- वारकरी सम्प्रदाय “वासुदेव हरी” का उद्घोष करता है |
- तंत्र उपासना में भी भगवान जी का वर्णन प्राप्त होता है, जहाँ इन्हें स्वाधिष्ठान चक्र की देवता माना गया है |
- इसके अतिरिक्त स्वामी नारायण, महानुभाव, चैतन्य, राधावल्लभ, निम्बार्क, वल्लभ आदि अनेकानेक सम्प्रदायों के आराध्य भगवान श्रीकृष्ण है |
- संस्कृत व्याकरण ग्रन्थ पाणिनीय अष्टाध्यायी के अंतर्गत, “वासुदेवार्जुनाभ्यां वुञ्” यह सूत्र दिखाई देता है |
- भारतवर्ष आज भी गुण-रूप, साहस-पराक्रम, रीती-नीति, ज्ञान-तेज, व्यवहार-तत्त्वज्ञान, निस्वार्थ राजनेता, महान वक्ता तथा कर्म-कर्तव्य, प्रेम-करुना आदि के आदर्श स्वरूप श्रीकृष्ण चरित्र का पठन, अध्ययन एवं ठाकुरजी का पूजन किया जाता है |
- उनके गीतोपदेशके साथ उन्हें वंदन करते है,
“सर्व धर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ||”
अत्यंत उपयुक्त जानकारी. इस तरह की जानकारी वारंवार हर हिंदू त्योहारों के पूर्व मिलती रहें यह नम्र विनंती तथा हम सभी इससे लाभान्वित होंगे इसमें कोई दो-राय नहीं.
सभी आदरणिय तथा परम् पुज्य गुरूजनोंको मेरा साष्टांग दणडवत्.
सद्गुरूनाथ महाराज की जय 🙏🙏.