वामन जयंती

  • व्रताका नाव : वामन द्वादशी व्रत
  • व्रत  तिथी:  भाद्रपद शु. द्वादशी
    भागवतपुराण (अष्टम स्कन्ध) के अनुसार  भाद्रपद शु. द्वादशी पर दोपहर के समय, श्रवण नक्षत्र में ‘वामन अवतार’ हुआ था,  इसलिए इस दिन यह व्रत किया जाता है।

इयमेव श्रवण द्वादशी तत्रेकादश्यां श्रवण योगे सैवो पोष्या |
एकादशी द्वादशी च वैष्णव्यमपि तत्रचेत् |

तद्विष्णुशृंखलंनाम विष्णुसायुज्यकृद्भवेत ||

भगवान वामनाचे संदर्भ

  • इन्हे विष्णु के दशावतार के पांचवें अवतार और भागवत पुराण (१.३.१९) के अनुसार १५ वा अवतार माना जाता है।
  • इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदं |”, इस ऋग्वेद की (१.२२.१७) ऋचा में इसका अस्पष्ट उल्लेख दिखाई देता है |
  • तैत्तिरीय संहिता (२.४.१२.२.) में इस अवतारका उल्लेख आता है |
  • शतपथ ब्राह्मण (१.२.२.१-५) में वामन कथाका संदर्भ दिखाई देता है |
  • भागवत पुराण (८.१८.५-६) में उल्लेख है कि अदिति ने “केशवतोषण” नामक एक व्रत किया और कश्यप-अदिती का भगवान वामन के रूप में एक पुत्र हुआ।

व्रतका विधी

  • द्वादशी की सुबह नदियों के संगम पर स्नान किया जाता हैं और घटो को मंत्रपुर्वक जल से भर दिया जाता हैं।
  • बादमे उसमे पंचरत्न डालकर उसे स्थापित किया जाता है |
  • दोपहर के बाद पूजा संकल्प छोड़कर घट की स्थापना करते हुए उसपर सुवर्ण, रजत, काष्ठ आदिका पूर्णपात्र रखा जाता है |
  • उसपर चार शेर तील, यव या गेहू रखकर धान्यराशिपर नए वस्र में लिपटी जनार्दनस्वरुपी वामनजी की प्रतिमा को रखा जाता है |
  • इस देवता प्रतिमा के आगे दंड, कमंडलू, छत्र, पादुका, अक्षमाला इ. रखते हुए उसका षोडशोपचार पूजन किया जाता है |
  • बादमे उसे गंध, चावल, पुष्प के ऊपर जल छोड़ते हुए विशेष अर्घ्य दिया जाता है |

अर्घ्यमंत्र

नमस्ते पद्मनाभाय नमस्ते जलशायिने | तुभ्यमर्घ्यं प्रयच्छामि बालवामन रूपिणे ||

प्रार्थना

अजिनदण्डकमण्डलुमेखला रुचिरपावनवामन मूर्तये |
मितजगत् त्रितयाय जितारये निगमवाक्पटवे बटवे नमः ||

अर्थ – अजिन, दंड, कमंडलू, मेखला आदि से सुशोभित जिसने त्रैलोक्य व्याप्त किया है, शत्रू पर विजय प्राप्त की है और जो वेदवाणी में कुशल है, ऐसे बटू वामन को मेरा वंदन है |

  • उस रात जागरण करते हुए कथापुराणश्रवण, नृत्यगायन किया जाता है |
  • दुसरे दिन पूजन पश्चात देवता विसर्जन किया जाता है |
  • बादमे आचार्यको प्रतिमा, घट व वस्त्र दान दिए जाते है |

घटदानमंत्र

नमो नमस्ते गोविन्द बुधश्रवण संज्ञकः |अद्यौघसंक्षयं कृत्वा सर्व सौख्यप्रदोभव || प्रीयताम् देवदेशोमम संशय नाशनः ||

  • एक ब्रह्मचारी को भोजन देकर दंड, छत्र, कमंडलू आदी का दान देकर भोजनमे दहिचावल देते हुए कर्मसमाप्ती की जाती है |
  • व्रतराज ग्रन्थानुसार दीर्घायुष्य, पुत्रसंतती, राजैश्वर्य आदि की प्राप्ती ऐसा इसका फल बताया जाता है |

उद्यापन

  • बारा साल बाद इसका उद्यापन किया जाता है |
  • इसमे भगवान वामनजी की बारा अंगुल ऊँची सुवर्ण, रजत वा ताम्र धातू की चतुर्भुज मूर्ति का पूजन तथा समिधा, तिल और आज्यसे होम किया जाता है और फिर उसे ऐसा कहते हुए दान दिया जाता है |

मूर्तीदानमंत्र

वामनः प्रतिगृह्णाति वामनोऽहं ददामि ते |वामनं सर्वतो भद्रं द्विजाय प्रतिपादये ||

महत्व

  • एकादशी, द्वादशी व श्रवण नक्षत्र एकत्र आनेपर इसे ‘विष्णूशृंखल योग’, कहा जाता है |
  • वैष्णव संप्रदायामें  एकादशीका विशेष महत्व है और कुछ स्थानों पर द्वादशी के साथ  दो दिनका उपवास रखा जाता है |
  • आषाढी एकादशी को ‘देवशयनी’ ऐसा कहा जाता है तो इस एकादशी योग को ‘परिवर्तन’ (निद्रामे बाजू पलटना), ऐसा मानते हुए इस समय श्री विष्णू परिवर्तनोत्सव’ मनाया जाता है और प्रार्थना की जाती है,ॐ वासुदेव जगन्नाथप्राप्तेयं द्वादशी तव | पार्श्वेन परिवर्तस्व सुखंस्वपिहि माधव ||
  • कुटुंब, व्यवसाय, नोकरी के साथअपने दुर्गती का परिहार इस प्रार्थना व योगसे साध्य होता है |
  • भगवान वामनजी की प्राचीन ‘वामन’‘विराट त्रिविक्रम’ ऐसी दो स्वरूप की मूर्तीयाकलकत्ताके ‘आशुतोष’‘ढाका’ के संग्रहालय में  दिखाई देती है |

देवेश्वराय देवाय देवसंभूतिकारणे | प्रभवे सर्वदेवानां वामनाय नमो नमः ||”

1 thought on “वामन जयंती”

  1. कृपा करके
    कलकत्ता व ढाका मे जो मूर्तीया है उसकी प्रतिमा अगर अपलोड किजीए

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *