अनंत चतुर्दशी
कौन्डील्य नामक ऋषीने ‘अनंत’ का शोध लेने हेतु कठोर साधना की और अनंत सर्वत्र है, ऐसी उन्हें प्रचिती आई | इसी अनुभूति का स्मरण करते हुए इस व्रत को किया जाता है |
कौन्डील्य नामक ऋषीने ‘अनंत’ का शोध लेने हेतु कठोर साधना की और अनंत सर्वत्र है, ऐसी उन्हें प्रचिती आई | इसी अनुभूति का स्मरण करते हुए इस व्रत को किया जाता है |
भागवतपुराण ( अष्टम स्कन्ध) के अनुसार भाद्रपद शु. द्वादशी पर दोपहर के समय, श्रवण नक्षत्र में ‘वामन अवतार’ हुआ था, इसलिए इस दिन यह व्रत किया जाता है।
उत्सव का नाव : ज्येष्ठागौरीउत्सव का मुहूर्त: श्रावण शु. पक्षे अनुराधा, ज्येष्ठा व मूल नक्षत्र (अष्टमी तिथियुक्त ग्राह्य ) मैत्रेणावाहये देवीं ज्येष्ठायां तु प्रपूजयेत् | मूले विसर्जये देवीं त्रिदिनं व्रतमुत्तमम् ||यदाज्येष्ठा द्वितीयदिने मध्यान्हात्पूर्वम् समाप्यते | तदा पूर्वदिनमेव पूजनम् |परदिने
व्रताका नाव : ऋषीपंचमी व्रत तिथी: भाद्रपद शु. पंचमी सा माध्यान्ह व्यापिनी ग्राह्या |दिनद्वये मध्यान्ह व्याप्तौ तदव्याप्तौ च पूर्वा || पूजा मांडणी चौकी पर वस्त्र आच्छादित करते हुए उसपर चावल के आठ ढेर रखे | उसपर कश्यपादी सात ऋषि
श्रीगणेश चतुर्थी यह प्राचीन काल से मनाया जाने वाला उत्सव है | यह प्रधान भारतीय उत्सव है जिसे वरद चतुर्थी या शिवा ऐसा भी कहा जाता है |
श्री गणेश यह ‘विघ्नहर्ता’ माने जाते है जिस कारण हरेक शुभकार्य के पूर्व इनका पूजन किया जाता है |
भगवान शंकरजी की “पति” रूप में प्राप्ति होने की इच्छा से पार्वतीने यह व्रत किया था, ऐसा सन्दर्भ पुरानो में दिखाई देता है |
श्रावणामावास्यायां प्रदोष व्यापिनां कार्यम्
दिनद्वये प्रदोषव्याप्तौ एकदेशव्याप्तौ परा |
परदिने प्रदोष व्याप्तभावे पूर्वाग्राह्या ||
पोला / पिठोरी अमावस्या Read More »
इयं निशीथ व्यापिनी पूर्वा वा परा ग्राह्या |
उभयेद्युनिशीथयोगे अभावे वा परैव ||
अस्यां रोहिणी नक्षत्र योगे बुध सोमवार योगेच फलातिशयः ||