श्रीगणेश चतुर्थी

उत्सव का नाम : श्रीगणेश चतुर्थी
उत्सवकी तिथी : भाद्रपद शु. चतुर्थी

सा मध्यव्यापिनी ग्राह्या | दिनद्वये साकल्येन मध्यान्हव्याप्तौ अव्याप्तौ वा |
चतुर्थी गणनाथस्य मातृविद्धा प्रशस्यते |
अस्यां चन्द्रदर्षने मिथ्याभिः दूषणं दोषः ||

चतुर्थी यह तृतीया से युक्त हो तो प्रशस्त मानी गयी है | इस दिन चन्द्रदर्शन नहीं किया जाता और यदि हुआ तो दोषपरिहार्थ स्यमन्तक मणि के श्लोक का पठन किया जाता है |
सिंहः प्रसेनमवधीत सिंहो जाम्बवता हतः |
सुकुमारक मा रोदिस्तव ह्येष स्यमन्तकः ||” (तिथीतत्त्व)

पार्थिव गणेश मूर्ती

साधारणतः एक फिट तक की मूर्ती गृह के लिए प्रशस्त मानी गयी है | यह मिटटी से बनी हुई हो जिससे इसका विसर्जन जल में हो सके | इस मुर्तिपर किये जाने वाले उपचार यह पुष्प / दुर्वा द्वारा किये जाते है तथा इक्कीस मोदकोका वायन दान भी दिया जाता है |

पूजा साहित्य

१)हल्दी कुम्कुमादी २) फुल, दुर्वा, तुलसी, बेल
३) नारियल, फल ४) नागवेल के पत्ते, सुपारी, चिल्लर सिक्के
५) सूती वस्त्र ६) पंचामृत, सौभाग्य वायन
७) चौकी, वस्त्र ८) धूप, दीप, निरांजन, नैवेद्य

पूजा विधी

शास्त्रोक्त पद्धतीसे प्रचलित पूजा विधि ऐसी है,

  • वंदन : घरके सभी बड़े व बुजुर्गोको, अपने घरमे स्थापित देवता और कुलदेवता को वंदन करे |
  • आचमन / प्राणायाम : तीन बार जल प्राशन करते हुए चौथी बार पत्र में छोड़े और प्राणायाम करे |
  • देवतास्मरण :

कुलदेवताभ्यो नमः| ग्रामदेवताभ्यो नमः| एतत् कर्म प्रधान देवताभ्यो नमः| सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमो नमः|

  • संकल्प : (हाथसे जल छोड़े |)

प्रतिवार्षिक विहितं पार्थिव सिद्धिविनायक देवता प्रीत्यर्थं यथाज्ञानेन यथाशक्ति सहित
प्राणप्रतिष्ठापूर्वकं ध्यान – आवाहनादि षोडशोपचार पूजनं अहं करिष्ये|
तत्रादौ निर्विघ्नता सिध्यर्थं महागणपति स्मरणं शरीर शुध्यर्थं षडङ्गन्यासं पृथ्वी, कलश, शङ्ख, घण्टा पूजनं च करिष्ये |

  • श्रीगणेश पूजन :

वक्रतुण्ड महाकाय सुर्यकोटि समप्रभ |निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा || श्रीगणेशाय नमः ||

  • पृथ्वी पूजन :

पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता | त्वं च धारय मां देवी पवित्रं कुरु चासनम् || भूम्यै नमः ||

  • न्यास विधि : विष्णवे नमः |”, ऐसा १२ बार कहते हुए मस्तक से लेके चरण पर्यंत स्वयं की शरीर शुद्धि करे |
  • कलश पूजन :

कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रुद्रः समाश्रितः |
मूले तत्रस्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः || कलशाय नमः ||

  • शङ्ख पूजन :

त्वं पुरा सागरोत्पन्नो विष्णुना विधृतः करे |
नमितः सर्व देवैश्च पाञ्चजन्य नमोस्तुते || शङ्खाय नमः ||

  • घण्टा पूजन :

आगमार्थं तु देवानां गमनार्थं तु राक्षसाम् |
कुर्वे घण्टारवं तत्र देवताव्हान लक्षणम् || घण्टायै नमः ||

  • दीप पूजन :

भो दीप ब्रह्म रूपस्त्वं ज्योतिषां प्रभुरव्ययः |
आरोग्यं देहि पुत्रांश्च सर्वान्कामान्प्रयच्छ मे || दीपदेवताभ्यो नमः ||

  • आत्मशुद्धि: स्वयं पर एवं पूजा साहित्य पर शंख जल प्रोक्षण करे |

शङ्खोदकेन पूजाद्रव्याणि संप्रोक्ष्य आत्मानं च प्रोक्षेत् |

प्राणप्रतिष्ठा विधी

श्री पार्थिव गणेशमूर्ती के ह्रदयस्थान को दाहिने हाथ से स्पर्श करते हुए अग्रिम श्लोको का उच्चारण करे,

अस्यैः प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यैः प्राणाः क्षरन्तु च | अस्यै देवत्वमर्चायै मा महेतिच कच्चन ||
अस्यां मूर्तौ मम प्राण इह प्राणाः | अस्यां मूर्तौ मम जीव इह स्थितः ||

  • तदनंतर ‘श्री सिद्धिविनायकाय नमः |’, ऐसा कहते हुए भगवानके मस्तक से लेकर चरण पर्यंत स्पर्श करे |
  • भगवान के आँखों में घी में भिगोई हुई दुर्वा का स्पर्श करे |
  • भगवान को दर्पण दिखाए तथा अष्टगंध, पुष्प एवं बालभोग (घी-गुड) अर्पण करे |
  • पात्र में जल छोड़ते हुए बोले, अनया पूजया श्रीसिद्धिविनायकः प्रीयताम् |

पूर्वपूजन

  • ध्यान : हाथ में रक्ताक्षत, दुर्वा, लाल पुष्प लेकर श्रीसिद्धिविनायक देवता का इस श्लोक से ध्यान करे और उसे अर्पण करे |

एकदन्तं शूर्पकर्णं गजवक्त्रं चतुर्भुजं |
पाशान्कुशधरं देवं ध्यायेत् सिद्धिविनायकम् ||
श्री सिद्धीविनायकाय नमः || ध्यानं समर्पयामि ||

  • पूर्व उपचार : तत्पश्चात श्री सिद्धीविनायकाय नमः | ऐसा उच्चारण करते हुए आवाहन, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, पंचामृतस्नान, गंधोदक स्नान, मांगलिक स्नान, शुद्धोदक स्नान आदि सभी पूजा उपचार पुष्प से जल सिंचन करते हुए करे |
  • धूप, दीप, नैवेद्य : बाद में पुर्वपुजन प्रीत्यर्थ भगवान पर फूल चढ़ाए, धुप – दीप और शेष पंचामृत का भोग चढ़ाए |
  • पुर्वपूजन समारोप : अब अभिषेक करने हेतु पहले के पुष्प (निर्माल्य) उतारकर नए पुष्प चढ़ाए और कहे,
    अनेन पुर्वाराधनेन श्री सिद्धिविनायकः प्रीयताम् |
  • अभिषेक : इस समय श्रीगणेश स्तुतीपर श्री अथर्वशीर्ष का पठण करे और पुष्प से जलसिंचन करे |
  • उत्तर पूजन : पुनः श्री सिद्धीविनायकाय नमः || इस श्लोकसे यज्ञोपवीत, सूती वस्त्र, गंध,  अक्षत, पुष्प, हल्दी – कुमकुम, सिंदूर, गुलाल, बुक्का, अत्तर, अलंकार आदी उपचार अर्पण करे |
  • अंग पूजा : हाथ में अक्षत (चावल) लेकर भगवाना के चरण से मस्तक पर्यंत चौदह अंगो पर अर्पण करे

लंबोदराय नमः | – उदरं पूजयामि ||, गौरीसुताय नमः | – स्तनौ पूजयामि ||
गणपायकाय नामः | – हृदयं पूजयामि ||, स्थूलकर्णाय नमः | – कण्ठं पूजयामि ||
स्कन्दाग्रजाय नमः| – स्कन्धौ पूजयामि||, पाशहस्ताय नमः | – हस्तौ पूजयामि ||
गजवक्त्राय नमः | – वक्त्रं पूजयामि ||, विघ्नहर्त्रे नमः | – ललाटं पूजयामि ||
सर्वेश्वराय नमः | – शिरः पूजयामि ||, गणाधिपाय नमः | – सर्वाङ्गं पूजयामि ||

  • पत्र पूजा : इसप्रकार नाम मंत्र से पत्रिया अर्पण करे | (यदि ना हो तो पुष्प वा चावल चढ़ाए |)

गणेश्वराय नमः | – पादौ पूजयामि ||, विघ्नराजाय नमः | – जानुनी पूजयामि ||
आखुवाहनाय नमः | – ऊरु पूजयामि ||, हेरंबाय नमः | – कटीं पूजयामि ||
सुमुखाय नमः | – मधुमालती समर्पयामि ||, गणाधिपाय नमः | – बिल्वं समर्प.||
गजाननाय नमः | – श्वेत दुर्वा ||, लंबोदराय नमः | – बोरी ||
हरसूनवे नमः | – धोतरा ||, गजकर्णकाय नमः | – तुलसी ||
वक्रतुण्डाय नमः | – शमी ||, गुहाग्रजाय नमः | – आघाडा ||
एकदन्ताय नमः | – डोरली ||, विकटाय नमः | – कण्हेर ||
कपिलाय नमः | – रुई ||, गजदन्ताय नमः | – अर्जुन ||
विघ्नराजाय नमः | – विष्णुक्रान्ता ||, बटवे नमः | – डाळिम्ब ||
सुराग्रजाय नमः | – देवदार ||, भालचन्द्राय नमः | – मारवा ||
हेरंबाय नमः | – पिंपळ ||, चतुर्भुजाय नमः | – जाई ||
विनायकाय नमः | – केवडा ||, सर्वेश्वराय नमः | – हदगा ||

  • पुष्प पूजा : चाफा, केवडा, कण्हेर, बकुल, सुर्यकमल, कमल, जास्वंद, मोगरा आदी विविध पुष्प अर्पण करे |
  • बाद में धूप, दीप, नैवेद्य, नारियल, दक्षिणा समर्पित करे |
  • दुर्वा पूजन : इसके बाद अग्रिम दस नाम मंत्रो से गंध, चावल (फुल) व दो दुर्वा चढ़ाए | प्रत्येक नाम के पश्चात दुर्वायुग्मं समर्पयामि |”, ऐसा कहे |

गणाधिपाय नमः | – दुर्वायुग्मं समर्प. ||, उमापुत्राय नमः | – दुर्वायुग्मं समर्प. ||
अघनाशनाय नमः | – दुर्वायुग्मं समर्प. ||, विनायकाय नमः | – दुर्वायुग्मं समर्प. ||
ईशपुत्राय नमः | – दुर्वायुग्मं समर्प. ||, सर्वसिद्धिप्रदायकाय नमः | – दुर्वायुग्मं समर्प. ||
एकदन्ताय नमः | – दुर्वायुग्मं समर्प. ||, इभवक्त्राय नमः | – दुर्वायुग्मं समर्प. ||
आखुवाहनाय नमः | – दुर्वायुग्मं समर्प. ||, कुमारगुरवे नमः | – दुर्वायुग्मं
समर्प. ||

  • तत्पश्चात २१ वी दुर्वा इस श्लोकसे अर्पण करे |

गणाधिप नमस्तेस्तु उमापुत्राघनाशन | एकदन्त भवक्त्रेति तथा मूषकवाहन ||
विनायकेशपुत्रेति सर्वसिद्धिप्रदायक | कुमारगुरवे नित्यं पूजनीयः प्रयत्नतः ||
दूर्वामेकां समर्पयामि ||

  • आरती व मंत्रपुष्प : बाद में आरती व मंत्रपुष्पांजली, प्रदक्षिणा व नमस्कार अर्पण करे,

एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि | तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ||
मन्त्रपुष्पाञ्जलिं समर्पयामि ||

  • प्रार्थना

विनायक गणेशान सर्व देव नमस्कृत |पार्वती प्रिय विघ्नेश मम विघ्ननिवारय ||

  • वायनदान : इस श्लोक से वायन दान करे | (लाल वस्त्र में इक्कीस मोदको का दान)

सघृतान् गुडसंमिश्रान् मोदकान् घृतपाचितान् |
वायनं मे गृहाणेदं वरं देहि विनायक ||

  • समारोप : (पात्र में जल छोड़े एवं दो बार आचमन करे |) अनेन यथाज्ञानेन कृत पूजनेन तेन श्री सिद्धिविनायक देवताः प्रीयेताम् |

श्रीगणेश विसर्जन

गणेश विसर्जन करने से पहले यथोपचार पूजन करे तथा इस श्लोक से गणेशजी पर चावल चढ़ाए और पार्थिव गणेश मूर्ति को उत्तर दिशा की ओर ले जाए |
यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय पार्थिवीम् | इष्टकाम प्रसिध्यर्थं पुनरागमनाय च ||
विसर्जन प्रवाही जल में ना हो सके तो प्राप्त जल में गंगा, तुलसी, पुष्प आदि अर्पण कर उसमे मूर्ति का विसर्जन करे और बाद में वह वृक्ष में प्रवाहित करे |

संदर्भ व महत्त्व

  • श्रीगणेश चतुर्थी यह प्राचीन काल से मनाया जाने वाला उत्सव है | यह प्रधान भारतीय उत्सव है जिसे वरद चतुर्थी या शिवा ऐसा भी कहा जाता है |
  • श्री गणेश यह ‘विघ्नहर्ता’ माने जाते है जिस कारण हरेक शुभकार्य के पूर्व इनका पूजन किया जाता है |
  • गणेशजी को प्रिय ऐसी चतुर्थी तिथि यह जागृती, स्वप्न, सुशुप्ती इन तीनो अवस्थाओं के पार जानेका संकेत दर्शाती है |
  • गणेशजी के महोत्कट विनायक, गुणेश, गणेश व धुम्रकेतू असे चार अवतार होने का उल्लेख गणेश पुराण में दिखाई देता है |
  • पत्रम्परागत विद्यारंभ, विवाहादी संस्कार, प्रवेश, यात्रा संग्राम व संकटकाल आदी के समय किया गया गणेश स्मरण / पूजन यह विघ्न निवारण करता है |

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