हरतालिका

व्रतका नाव : हरतालिका
तिथि : भाद्रपद शु. तृतीया

कला काष्ठा मुहुर्तापि द्वितीया यदि दृश्यते |
सा तृतीया न कर्तव्या कर्तव्या परसंयुता |
केवलक्षय वशादभावे द्वितीया युक्ता ग्राह्या ||

पूजा साहित्य

१)हल्दी कुम्कुमादी     
२) फुल, दुर्वा, तुलसी, बेल
३) नारियल, फल    
४) नागवेल के पत्ते, सुपारी, चिल्लर सिक्के
५) सूती वस्त्र  
६) पंचामृत, सौभाग्य वायन
७) चौकी, बालू, वस्त्र
८) धूप, दीप, निरांजन, नैवेद्य

पूजा की तैयारी

  • चौकिपर वस्त्र डालकर बालुका शिवलिंग बनाकर उसे स्थापित करे | (हरतालिका देवी की मूर्ति हो तो उसे भी स्थापित करे |)
  • इसके पश्चात पुरोहित हो तो उसके द्वारा अन्यथा अग्रिम श्लोक से स्थापित देवता की प्राणप्रतिष्ठा करे |

अस्यैः प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यैः प्राणाः क्षरन्तु च |अस्यै देवत्वमर्चायै मा महेतिच कच्चन ||

पूजा विधी

शास्त्रोक्त पद्धतीसे प्रचलित पूजा विधि ऐसी है,

  • वंदन : घरके सभी बड़े व बुजुर्गोको, अपने घरमे स्थापित देवता और कुलदेवता को वंदन करे |
  • आचमन / प्राणायाम : तीन बार जल प्राशन करते हुए चौथी बार पत्र में छोड़े और प्राणायाम करे |
  • देवतास्मरण :

कुलदेवताभ्यो नमः| ग्रामदेवताभ्यो नमः| एतत् कर्म प्रधान देवताभ्यो नमः| सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमो नमः|

  • संकल्प : (हाथसे जल छोड़े |)

मम इह जन्मनि जन्मान्तरे च अखण्डित सौभाग्य पुत्रपौत्रादि वृद्धि दीर्घायुष्य प्राप्ति
प्रतिवार्षिक हरतालिका व्रतांगत्वेन श्रीउमामहेश्वर देवता प्रीत्यर्थं यथाज्ञानेन षोडशोपचार पूजनं अहं करिष्ये |

  • श्रीगणेश पूजन, कलश, पृथ्वी, कलश, शंख, घंटा व दीप पूजन करे |
  • श्रीगणेश पूजन :

वक्रतुण्ड महाकाय सुर्यकोटि समप्रभ |निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा || श्रीगणेशाय नमः ||

  • पृथ्वी पूजन :

पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता | त्वं च धारय मां देवी पवित्रं कुरु चासनम् || भूम्यै नमः ||

  • न्यास विधि : विष्णवे नमः |”, का १२ समय जप करकेअपने शरीर को सिर से पैर तक शुद्ध करे |
  • कलश पूजन :

कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रुद्रः समाश्रितः |
मूले तत्रस्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः || कलशाय नमः ||

  • शङ्ख पूजन :

त्वं पुरा सागरोत्पन्नो विष्णुना विधृतः करे |
नमितः सर्व देवैश्च पाञ्चजन्य नमोस्तुते || शङ्खाय नमः ||

  • घण्टा पूजन :

आगमार्थं तु देवानां गमनार्थं तु राक्षसाम् |
कुर्वे घण्टारवं तत्र देवताव्हान लक्षणम् || घण्टायै नमः ||

  • दीप पूजन :

भो दीप ब्रह्म रूपस्त्वं ज्योतिषां प्रभुरव्ययः |
आरोग्यं देहि पुत्रांश्च सर्वान्कामान्प्रयच्छ मे || दीपदेवताभ्यो नमः ||

  • ध्यान : हाथ में अक्षत, बेल, पुष्प लेकर श्रीउमामहेश्वर देवता का इस श्लोक से ध्यान करे और उसे अर्पण करे |

पीतकौषेय वसनांहेमाभां कमलासनां | भक्तानां वरदां नित्यं पार्वती चिन्तयाम्यहम् ||
विधायवालुकालिङ्गं अर्चयन्तीं महेश्वरं | पुर्णेन्दु वदनौ ध्यायेत् हरितालीं वरप्रदाम् ||

  • पूर्व उपचार : तत्पश्चात श्री उमामहेमहेश्वराभ्यां नमः | सा उच्चारण करते हुए आवाहन, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, पंचामृतस्नान, गंधोदक स्नान, मांगलिक स्नान, शुद्धोदक स्नान आदि सभी पूजा उपचार पुष्प से जल सिंचन करते हुए करे |
  • पुर्वपूजन : बाद में पुर्वपुजन प्रीत्यर्थ भगवान पर फूल चढ़ाए, धुप – दीप और शेष पंचामृत का भोग चढ़ाए | अब अभिषेक करने हेतु पहले के पुष्प (निर्माल्य) उतारकर नए पुष्प चढ़ाए और अभिषेक प्रारंभ करे |
  • अभिषेक : (पुष्प से जल सिंचन करते हुए करे अभिषेक करे |) अभिषेक में शिवस्तुती पर महिम्न आदी स्तोत्रो का पठण करे |
  • उत्तर पूजन : पुनः श्री उमामहेमहेश्वराभ्यां नमः| इस श्लोकसे यज्ञोपवीत, सूती वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, हल्दी – कुंकुम, अलंकार आदी उपचार करे तथा वायनदान भगवान के सामने रखे |
  • अंग पूजा : हाथ में अक्षत लेकर भगवानके चरणों से ललाट पर्यंत समस्त चौदह अंगोपर अर्पण करे | (“श्री उमामहेमहेश्वराभ्यां नमः|”)
  • पत्र पूजा : साधारणतः अशोक, आवली, दुर्वा, कण्हेर, कदंब, ब्राह्मी, धोतरा, आघाडा आदि  विविध १६ पत्रिया यथालाभ अर्पण की जाती है |
  • पुष्प पूजा : चाफा, केवडा, कण्हेर, बकुल, धोतरा, सुर्यकमल, कमल, जास्वंद, मोगरा आदी विविध पुष्प अर्पण करे | इसके साथ पांच या सोलह बिल्वपत्र भी समर्पित किए जाते है |
  • तत्पश्चात धूप, दीप, नैवेद्य, फल – नारियल, दक्षिणा अर्पण करे और आरती, कर्पुर आरती, मंत्रपुष्पांजली, प्रदक्षिणा, नमस्कार समर्पित करे |
  • अर्घ्यप्रदान : अपने हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प, सुपारी, सिक्का लेकर उसपर जल छोड़ते हुए प्रत्येक श्लोक से एक ऐसे तीन अर्घ्य प्रदान करे |

शिवरूपे शिवे देवी शङ्कर प्राणवल्लभे | उमे सर्वार्थदे देवी गृहाणार्घ्यं नमोsस्तुते || १ ||
नमोस्तुते मृडानीश अपर्णा प्राणवल्लभा | भक्त्यानीतं मयाह्रीदं गृहाणार्घ्यं नमोsस्तुते || २ ||
व्रत संपूर्ति सिध्यर्थं यथाशक्ति मयाहतम् | आलिभिः सहिते देवी गृहाणार्घ्यं नमोsस्तुते || ३ ||

  • प्रार्थना :

हरतालिके नमस्तेस्तु सशिवे भक्तवत्सले | संसारभय भीताहं त्वमेव शरणं मम ||

  • समारोप : (पात्र में जल छोड़े |) अनेन यथाज्ञानेन कृत पूजनेन तेन श्रीउमामहेश्वरौ देवताः प्रीयेताम् |
  • कुछ प्रदेशो में इसके बाद पुरोहितो को वायन (दान) दिया जाता है और अगले दिन दहिचावल का भोग चढ़ाकर पूजा विसर्जन किया जाता है |

संदर्भ व महत्त्व

  • भगवान शंकरजी की “पति” रूप में प्राप्ति होने की इच्छा से पार्वतीने यह व्रत किया था, ऐसा सन्दर्भ पुरानो में दिखाई देता है |
  • इसे “सायास व्रत” भी कहा जाता है, जो शंकरजी ने सभी स्त्रियों को विवाहोत्तर करने का उपदेश दिया |
  • इस दोनों कारणों से कुमारिकाए तथा विवाहिताए दोनों इस व्रत को निभाते हुए आज दिखाई देती है |
  • हरतालिका पूजा यह सखी सहित की जाने वाली उमामहेश्वर की आराधना है |यह सामुदायिक रूप से भी मनायी जाती है |
  • पूजा विधान में विनियोग होनेवाली पत्रिया औषधि गुणों से युक्त होती है, इस व्रत के द्वारा सृजन शक्ति की आधार स्वरूप नारीशक्ति को इसका परिचय होता है |

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